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पाकिस्तान का एक गांव ऐसा भी जहां दिनभर गूंजती हैं गोलियों की आवाज, एक हजार दुकानें

locationनई दिल्लीPublished: Nov 11, 2017 11:10:27 pm

Submitted by:

Prashant Jha

इस क्षेत्र में हथियारों का निर्माण करने वाली लगभग एक हजार दुकानें हैं, और विनिर्माण का कौशल, जो कि एक सौ से ज्यादा पुराना है, पीढ़ी से पीढ़ी तक चलता

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पेशावर. पाकिस्तान का एक गांव ऐसा भी है जहां जहां दिनभर गोलियों की आवाज गूंजती रहती है। हाल ही में एक फोटोग्राफर और लेखक ने इसका खुलासा किया है। डेनियल शाह नामक फोटोग्राफर ने अपनी नियुक्ति के दौरान इस साल की शुुरुआत में कराची से पेशावर तक सिंधु नदी के पश्चिमी तट पर सफर किया। इस दौरान उन्होंने पेशावर शहर से सिर्फ 35 किलोमीटर पूर्व में स्थित एक दररा आदम खेल नामक गांव देखा, जहां गोलियों की आवाज़ पहाड़ों में सुबह से शाम तक गूंजती है।
उन्होंने बताया कि गांव के सभी कोनों से गोलियों की सुनाई दे रही थी, पहले तो ऐसा लग रहा है वे एक युद्ध क्षेत्र में आ गए हैं, लेकिन बाद में पता चला कि जगह हथियार निर्माण के लिए प्रसिद्ध है। यहां कंधे पर हथियार ले जाते हुए युवा खुलेआम घूमते नजर आए। यहां के कबीले के लोग तेज गोलीबारी वाले हथियारों के निर्माता हैं। वे जमीन पर एक जगह गड्ढा खोद कर हवा में फायर कर नव निर्मित बंदूकों का परीक्षण करते हैं।
इस क्षेत्र में हथियारों का निर्माण करने वाली लगभग एक हजार दुकानें हैं, और विनिर्माण का कौशल, जो कि एक सौ से ज्यादा पुराना है, पीढ़ी से पीढ़ी तक चलता आया है। वे लोग विभिन्न प्रकार के हथियार बनाने में कुशल हैं। जैसे 12-गेज शॉटगन से लेकर पिस्तौल, एके -47 और बहुत भी कुछ। ये लोग किसी भी प्रकार के हथियार को गूगल पर देखकर उसकी डिजाइन की प्रतिलिपि बना सकते हैं।
अगर बात इनके अतीत की करें तो, इनके पूर्वज कारीगर ब्रिटिश सेना के इस्तेमाल किए गए हथियारों की प्रतियां बनाया करते थे। हालांकि, 1980 के दशक में सोवियत-अफगान युद्ध के दौरान इनके बनाई हथियारों की बड़ी संख्या में बिक्री हुई। ये हथियार मुजाहिद्दीन जैसे विद्रोही समूहों को सप्लाई किए गए थे। जो पाकिस्तानी सेना की ओर से प्रशिक्षित और संयुक्त राज्य अमरीका और सऊदी अरब सेे वित्त पोषित था। ये कारीगर उस अवधि को अपने जीवन का एक शानदार समय मानते हैं।
इतना ही नहीं यहां के आदिवासियों के बीच अभी भी हथियार रखना एक सामाजिक आवश्यकता मानी जाती है। कारीगरों ने आवश्यकतानुसार बंदूकों के डिजाइन और पैटर्न में बदलाव भी किए हैं। एक स्थानीय युवक इंतजर हसन ने बताया कि वह पशु-पक्षी, फूल और पत्तियों के डिजाइन करने में निपुण हैं। वह गांव के केवल उन छह लोगों में से एक जो यह काम जानते हैं।
वहीं इंतजर ने बताया कि पहले वह रोजाना 2,000 रुपए कमा लेता था, जो अब प्रति दिन 500 रुपए तक आ गया है क्योंकि अब बंदूकों के लिए कई ग्राहक नहीं हैं। बंदूक बनाने वालों के लिए यह सबसे कठिन समय हैं, क्योंकि सरकार ने तालिबान और अन्य आतंकवादी समूहों को हथियारों की आपूर्ति रोकने के लिए शस्त्र निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया है।
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