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पीएम मोदी की तमाम कोशिशों के बाद भी चीन के साथ संबंधों में ठहराव, पिछले पांच सालों में हर मोर्चे पर पिछड़ा भारत

locationनई दिल्लीPublished: Apr 30, 2019 07:42:20 am

Submitted by:

Mohit Saxena

चीन के मुकाबले भारत अब भी है बहुत पीछे
पिछले 5 साल में हर मोर्चे पर आगे निकला चीन
पीएम मोदी की कोशिशों का नहीं दिखा बहुत अधिक असर

Modi-Jinping

नई दिल्ली। पीएम मोदी की तमाम कोशिशों के बाद भी चीन के रिश्ते पहले जैसे खट्टे मीठे बने हुए हैं। पीएम मोदी ने पिछले एक साल में चीन के साथ संबंध सुधारने की जी-तोड़ कोशिशें की है लेकिन इसका कोई खास फायदा नहीं दिख रहा है। पीएम मोदी के पहले पांच वर्षों के दौरान भारत चीन से हर मामले में पीछे खिसक गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे साल चीन के राष्ट्रपति के साथ मिलकर संबंध सुधारने की कवायद करते रहे लेकिन बात कुछ जमी नहीं। कभी तो चीन ने ऐसा रुख दिखाया जैसे कि वह भारत के साथ अपने संबंध सुधारने के लिए दृढ हो, लेकिन भारत की यह आशा एक छलावा साबित हुई और चीन ने हर बार भारत को जोर का झटका दिया।

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पांच सालों में चीन से पिछड़ा भारत

पीएम मोदी ने जब भारत द्वारा अमरीका, रूस और चीन के साथ अंतरिक्ष शक्ति का दम्भ भरते हुए निचली कक्षा में एक उपग्रह को नष्ट करने का एलान किया था , तब उनके इस कदम की कई नेताओं ने आलोचना की थी। पीएम मोदी ने कहा कि मिसाइल परीक्षण “अत्यंत गर्व” का क्षण था, जबकि चीन ने 2007 में इसी तरह का परीक्षण किया था। हालांकि भारत के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि थी लेकिन बाद में इस मामले का एक पक्ष जो सामने आया वो यह है कि पीएम की घोषणा ने भारत को चीन से कमतर साबित कर दिया। भारत सरकार ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बेल्ट एंड रोड इंफ्रास्ट्रक्चर फोरम में भाग लेने से इनकार कर दिया। फिर भी पिछले पांच वर्षों के आंकड़ों पर गर्व करें कि भारत चीन से पीछे रह गया है। अगर चीन और भारत की तुलना करें तो आप पाएंगे कि चीन के साथ तुलना करना भारत के लिए असंभव है।

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क्या है वर्तमान स्थिति

चीन और भारत के बीच सबसे बड़ा और गौर करने वला अंतर रक्षा क्षेत्र में देखने को मिला है। भारत की अर्थव्यवस्था $ 2.6 ट्रिलियन तक विस्तारित हो गई है और इसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार चीन है। मोदी के कार्यकाल में भारत ने चीन के साथ अपने संबंधों को कुशलता से संभाला। भारत ने बेहद बारीक तरीके से चीन के साथ सीमा विवाद को हैंडल किया। यह भी सही है कि ऐसे कई मौके आये जब भारत चीन से बड़ी राहतें पाने में कामयाब हुआ। हालांकि अंत में जो बात निकलकर सामने आई वह यह है कि चीन के रुख में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। एक तरफ जहां भारत ने बेहद सधे हुए तरीके से रूस और अमरीका से हथियार खरीदे, वहीं चीन ने अपने रक्षा खर्च में वृद्धि की और सशस्त्र बलों को अधिक स्वायत्तता प्रदान की। चीन के पास अपनी जरूरतों और योजनाओं के अनुरूप बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था और रक्षा बजट है। जबकि भारत का दावा है कि वह किसी भी देश के साथ हथियारों की दौड़ में नहीं है और उसके पास जो रक्षा बजट है जो उसकी जरूरतों के अनुसार पर्याप्त है। फिर भी भारत ने, एशिया पावर इंडेक्स के अनुसार, हर भू-राजनीतिक पटल पर चीन को पीछे छोड़ना जारी रखे हुए है।

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भारत-चीन के बीच भरोसे का संकट

मोदी की भारतीय विदेश नीति में इंजेक्शन लगाने की नीति से बहुत अधिक फायदा तो नहीं हुआ लेकिन इतना जरूर रहा कि चीन और पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंदियों के मुकाबले भारत ने अपनी स्थिति कुछ हद तक मजबूत की। बता दें कि चीन के अनुमानित 7,500 की तुलना में भारत में केवल 940 राजनयिक हैं। सशस्त्र बलों में यह स्थिति और भी खराब हो जाती है। शी ने 1950 के दशक के बाद से चीन के सबसे व्यापक सैन्य सुधारों की देखरेख की, अंतरिक्ष और साइबर कार्यों के साथ अपनी सैन्य तकनीक का आधुनिकीकरण किया। भारत 1।4 मिलियन की मजबूत सेना रखता है और अपने रक्षा धन का बड़ा हिस्सा नए उपकरणों के बजाय वेतन और पेंशन पर खर्च करता है। एक तरफ जहां भारत चीन को हरदम शंका की दृष्टि से देखता है, वहीं चीन, भारत को अमरीका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, फ्रांस और वियतनाम आदि देशों के साथ वास्तविक जोखिम के रूप में देखता है।

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बुनियादी ढांचे का अंतर

हिमालय में तनावपूर्ण स्थिति के बाद जब भूटान के साथ सीमावर्ती क्षेत्र में चीनी और भारतीय सैनिकों का आमना-सामना हुआ, तो उसके बाद मोदी और शी के बीच एक के बाद एक शिखर वार्ता हुई। भारत और चीन में सौम्य प्रतिस्पर्धा की क्षमता है।फिर भी चीन के बुनियादी ढांचे के निवेश दीर्घकालिक रणनीतिक तस्वीर को बदल रहे हैं। बीजिंग ने चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की परियोजनाओं में $ 60 बिलियन से अधिक का निवेश किया है, साथ ही म्यांमार से लेकर श्रीलंका तक बंदरगाहों में भी उसका पैसा लगा है। जबकि भारत के प्रतिस्पर्धी बुनियादी ढांचा निवेश अभाव रहा है। बीजिंग ने भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह से भी बाहर रखा है, जो परमाणु सामग्री के निर्यात को नियंत्रित करता है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में खूंखार आतंकी मसूद अजहर को बैन करने के भारतीय और पश्चिमी देशों के प्रयासों को चीन ने मटियामेट कर दिया और कहा कि उसे इस मामले पर विचार करने के लिए और भी समय चाहिए।

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