लोगों को नहीं पहुंचा नुकसान
सैन्य अभियान की कई संगठनों ने निंदा की और संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार उच्चायुक्त ने इसे ‘जनजातीय सफाया’ करने वाला कदम बताया। वहीं, सेना की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि सेना ने हमेशा इस बात को सुनिश्चित किया है कि सुरक्षा बल कानून के मुताबिक काम करें और निर्दोष नागरिकों की हत्या नहीं हो। रिपोर्ट में कहा गया कि सुरक्षा बलों ने नागरिकों को गिरफ्तार नहीं किया। उन्हें नहीं मारा-पीटा और उनकी हत्या नहीं की। उन्होंने संपत्ति नहीं लूटी या नष्ट नहीं की। किसी ग्रामीण को धमकाया या डराया नहीं। सेना ने कहा कि उसकी रिपोर्ट 3,217 रोहिंग्या ग्रामीणों से बातचीत पर आधारित है, जिन्हें देश के (म्यांमार) नागरिक के रूप में नागरिकता नहीं मिली है और रिपोर्ट में उन्हें बांग्लादेशी कहा गया है।
लोगों की जान लेने से इनकार
वरिष्ठ जनरल मिन आंग ह्लेइंग के फेसबुक पेज पर प्राकशित रिपोर्ट के मुताबिक, 376 विद्रोहियों और सुरक्षा बलों के 13 सदस्यों की मौत की मौत संघर्ष में हुई है, जिन्हें ‘बंगाली आतंकवादी’ कहा गया है। साथ ही हुई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि पलायन कर रहे लोगों को एक भी गोली नहीं मारी गई और विद्रोहियों को जिनेवा समझौते के प्रावधानों के अनुसार ही गिरफ्तार किया गया। मानवाधिकार संगठन एमेनस्टी इंटरनेशनल (एआई) ने इस रिपोर्ट को म्यांमार सेना द्वारा मानवता के खिलाफ अपराध को छुपाने के रूप में वर्णित किया है।