scriptनेपाल: गढ़ीमाई मंदिर में पंचवर्षीय उत्सव की धूम, 30 हजार से अधिक पशुओं की दी जाएगी बलि | Nepal: Celebration of five year festival at Garhimai temple, more than 30 thousand animals will be sacrificed | Patrika News

नेपाल: गढ़ीमाई मंदिर में पंचवर्षीय उत्सव की धूम, 30 हजार से अधिक पशुओं की दी जाएगी बलि

locationनई दिल्लीPublished: Dec 03, 2019 09:06:15 pm

Submitted by:

Anil Kumar

काठमांडू से 100 किमी दूर बैरियापुर में स्थित गढ़ीमाई मंदिर में हर पांच साल के बाद पशुओं का सामूहिक वध किया जाता है
गढ़ीमाई मंदिर में होने वाले उत्सव में नेपाल के साथ ही भारत से लाखों लोग भाग लेते हैं

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काठमांडू। भारत में पशु हत्या को लेकर समाज में लगातार समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं और मांग की जाती रही है कि पशुओं की हत्या पर बैन लगे। लेकिन इन सबके बीच परंपरा और धर्म के नाम पर हर वर्ग व समुदाय के लोग पशुओं की बलि देते हैं।

ऐसा ही कुछ मामला पड़ोसी देश नेपाल में भी देखने को मिलता है। नेपाल का गढ़ीमाई मंदिर पांच साल में एक बार लगने वाले मेले व पशुओं की बलि देने से संबंधित अनुष्ठान के लिए तैयार है। इस उत्सव में दो दिनों तक मंदिर परिसर में स्थापित बूचड़खाने में भैंस सहित 30 हजार से अधिक पशुओं की बलि दी जाती है।

जानवरों की बलि के खिलाफ पशु अधिकार कार्यकर्ता आवाज उठाते रहे हैं। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने भी इस संबंध में निर्देश जारी किए हैं, मगर आस्था के आगे इन सभी की अनदेखी की जाती है।

हर पांच साल में आयोजित होता है उत्सव

काठमांडू से 100 किमी दूर बैरियापुर में स्थित गढ़ीमाई मंदिर में हर पांच साल के बाद पशुओं का सामूहिक वध किया जाता है। 2009 के बाद से हालांकि मंदिर के संचालकों पर पशु बलिदान पर प्रतिबंध लगाने का दबाव बढ़ा है।

यह उत्सव शक्ति की देवी गढ़ीमाई के सम्मान में आयोजित होता है। इसमें नेपाल के साथ ही भारत से लाखों लोग भाग लेते हैं। यह उत्सव मंगलवार और बुधवार को मनाया रहा है।

हजारों लोग पहले ही मंदिर परिसर में अपने पशुओं के साथ बलि देने के लिए पहुंच चुके हैं। अगस्त 2016 में नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को गढ़ीमाई मंदिर मेले में पशु बलि रोकने का निर्देश दिया था।

इसके जवाब में गढ़ीमाई पंचवर्षीय महोत्सव की मुख्य समिति ने कहा है कि वह अदालत के आदेश का पालन करेगी और उन्होंने इस साल कबूतरों को नहीं मारने का फैसला किया है। मंगलवार और बुधवार को होने वाले सामूहिक वध में पहले चूहों, कबूतरों, मुर्गियों, बत्तखों, सूअरों और भैंसों की बलि दी जाएगी।

पिछले उत्सव में 10 हजार पशुओं की दी गई थी बलि

पिछले उत्सव में मंदिर के मेले में हजारों अन्य जानवरों के साथ लगभग 10,000 भैंसों का वध हुआ था। इस तरह से यह जगह इतनी बड़ी संख्या में जानवरों के वध का दुनिया का सबसे बड़ा स्थल बन जाता है।

हिमालयन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, यहां पत्रकारों और जनता को प्रवेश करने या फोटो लेने की अनुमति नहीं है। मंदिर के मुख्य पुजारी मंगल चौधरी ने कहा कि भैंस की बलि देने का शुभ दिन मंगलवार है, जबकि बुधवार को अन्य जानवरों की बलि दी जाती है। पशु अधिकार संगठन एनिमल वेलफेयर फाउंडेशन ने पशु बलि के खिलाफ अभियान शुरू किया है।

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