तीन मौत के बाद लिया फैसला
दरअसल, इस प्रथा के तहत माहवारी के दौरान महिला को अछूत मानकर उसे एक अलग और एकांत स्थान में रहने को मजबूर किया जाता है। बाजुरा जिले में ऐसी ही एक अलग रही एक महिला और उसके दो बच्चे की मौत के बाद अधिकारी ने यह अभियान चलाया है। काठमांडू से 720 किलोमीटर दूर बाजुरा जिला स्थित बुदिनंदा नगरपालिका की उपमहापौर सृष्टि रेग्मी ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया, ‘झोपड़ी की परंपरा अवैध धार्मिक परंपरा है, जिसमें अनेक महिलाओं की मौत हो चुकी है। इस आरोपित आस्था का अंत होना चाहिए।’
सुप्रीम कोर्ट ने भी लगाई थी परंपरा पर रोक
26 वर्षीय रेग्मी का दावा है कि वो बाजुरा स्थित अपने निर्वाचन क्षेत्र और जिले के दूर-दराज के हर गांव में जाकर ऐसी झोपड़ियां तोड़ेंगी। उन्होंने ये भी कहा कि सदियों से चलती आ रही ये परंपरा कम समय में खत्म करना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन ये असंभव नहीं है। आपको बता दें कि नेपाल में सदियों से माहवारी के दौरान महिलाओं और लड़कियों को उनके घरों से अलग झोपड़ियों में ठहराने की परंपरा है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में इस परंपरा पर रोक लगा दी थी। इसके बाद अगस्त 2017 में नेपाल सरकार ने इसे आपराधिक कृत्य करार दिया था। इसके साथ ऐसे मामलों के अपराधियों को तीन महीने कारावास और 3,000 नेपाली रुपये जुर्माने का प्रावधान किया था। इसके अलावा उपमहापौर ने विभिन्न नगरपालिकाओं में अब तक 80 माहवारी झोपड़ियां तुड़वाई हैं।
घुटने से हुई थी दो बच्चे और उनकी मां की मौत
गौरतलब है कि कुछ हफ्ते पहले आठ जनवरी की रात बाजुरा की अंबा बोहरा को माहवारी के कारण बिना खिड़की की मिट्टी और पत्थर से निर्मित एक झोपड़ी रहने को दी गई थी। उसने खुद को और अपने नौ साल और 12 साल के दो बेटों को गर्म करने के लिए आग जलाई थी। अगले दिन जब बोहरा की सास ने झोपड़ी का दरवाजा खोला तो तीनों की मौत हो चुकी थी। मामले की छानबीन करने पहुंची पुलिस के अनुसार, तीनों की मौत दम घुटने से हुई थी। पुलिस का कहना था कि झोपड़ी में धुआं निकलने का कोई मार्ग नहीं था।