एशिया

नेपाल भूकंप ने ‘जिवित देवी’ को एकांतवास छोड़ने पर किया मजबूर

नेपाल में अप्रेल में आए भंयकर भूकंप में 8,800 लोग मारे गए थे। इस भूकंप ने कई लोगों की जिंदगी प्रभावित किया है

Jul 20, 2015 / 06:00 pm

भूप सिंह

Dhana Kumari Bajracharya

पाटन। नेपाल में अप्रेल में बड़े पैमाने पर आए भंयकर भूकंप में 8,800 लोग मारे गए थे। इस भूकंप ने कई लोगों की जिंदगी अलग-अलग तरह से प्रभावित किया है। ऎसा ही कुछ नेपाल में सबसे लंबे समय से “जीवित देवी” का दर्जा पाने वाली महिला के साथ हुआ। दो साल की उम्र से एकांतवास में रह रहीं धाना कुमारी बजराचार्य के लिए भूकंप ने जिंदगी बदलकर रख दी है।
उन्होंने अपने जिंदगी के बारे में बताया कि उनको पहली बार सड़कों पर चलना पड़ा। दक्षिण काठामांडु के ऎतिहासिक शहर पाटन में 7.8 परिमाण भूकंप के झटके आए। 1980 के दशक में “पाटन की कुमारी” की सत्ता से बेदखली के घाव उनके मन में आज भी ताजा है। 25 अप्रैल को आए भूकंप से पहले बजराचार्य सार्वजनिक तौर पर शायद ही कभी सामने आती थीं।

इस हिमालयी राष्ट्र में “जीवित देवी” का दर्जा पाने वाली धाना कुमारी बजराचार्य एकांतवास में रहती हैं और उन परंपराओं से बंधी हुई हैं जिनमें हिंदुत्व और बौद्ध धर्म की खूबियां देखी जा सकती हैं। लेकिन भूकंप के बाद धाना कुमारी को पिछले तीन दशकों में पहली बार अपने घर से बाहर आना पड़ा है।

भूकंप के सदमे से वह अभी उबर नहीं पाई हैं। 63 साल की धाना कहती हैं, “शायद भगवान लोगों से नाराज है क्योंकि लोग परंपराओं का अब सम्मान नहीं करते हैं।” उनकी भतीजी चनीरा बजराचार्य बताती हैं, “जब आपको कु दरत मजबूर करती है तो आपको वह भी करना होता है जिसके बारे में आप ने कभी सोचा नहीं होता है।”

1954 में जब उन्हें “पाटन की कुमारी” का दर्जा दिया गया था तो उस वक्त वह महज दो साल की थीं। मेवार संप्रदाय की कुमारी कन्या को ही यह दर्जा मिल सकता था, इसे चुने जाने की प्रक्रिया भी उतनी ही मुश्किल थी। स्थानीय परंपराओं के मुताबिक जिस लड़की का वक्ष शेरनी की तरह और जांघ हिरणी जैसा हो, वही “कुमारी देवी” बन सकती थीं।

अपनी जिंदगी में उन्होंने नेपाल में कई तरह के उतार-चढ़ाव देखें। नेपाल एक हिंदू राष्ट्र से धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में बदल गया। 1984 में 13 साल के राजकुमार दीपेंद्र के दबाव में “पाटन की कुमारी” को सत्ता से बेदखल कर दिया था।

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