Nepal: सुप्रीम कोर्ट ने ओली को दिया बड़ा झटका, संसद को बहाल कर 13 दिन में सत्र में बुलाने का दिया आदेश
HIGHLIGHTS
- नेपाल की शीर्ष अदालत में मुख्य न्यायाधीश चोलेंद्र समशेर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा को भंग करने के सरकार के फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए संसद को बहाल कर दिया है।
- कोर्ट ने 13 दिन के भीतर संसद का सत्र आहूत करने का आदेश दिया है।

काठमांडू। नेपाल में जारी सियासी उठापटक के बीच सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कार्यवाहक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को एक बड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने संसद भंग किए जाने के फैसले को पलट दिया है। नेपाल की शीर्ष अदालत में मुख्य न्यायाधीश चोलेंद्र समशेर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा को भंग करने के सरकार के फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए संसद को बहाल कर दिया है।
इसके साथ ही कोर्ट ने 13 दिन के भीतर संसद का सत्र आहूत करने का आदेश दिया है। बता दें, पीएम ओली की सिफारिश पर 20 दिसंबर को राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने संसद भंग कर दिया था और फिर 30 अप्रैल और 10 मई को दो चरणों में चुनाव कराने की घोषणा कर दी थी। सरकार के इस फैसले के बाद से नेपाल की सियासत में खलबली मच गई थी।
सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी 13 याचिकाएं
आपको बता दें कि अचानक संसद भंग करने के केपी ओली सरकार के फैसले का उन्हीं की पार्टी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पुष्प कमल दहल प्रचंड और देश की जनता ने भारी विरोध किया था। इसके बाद संसद भंग किए जाने को लेकर अलग-अलग 13 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। इनमें सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्य सचेतक देव प्रसाद गुरुंग की याचिका भी शामिल है।
इन सभी याचिकाओं में संसद को फिर से बहाल करने की मांग की गई थी। इन सभी याचिकाओं पर जस्टिस बिश्वंभर प्रसाद श्रेष्ठ, जस्टिस अनिल कुमार सिन्हा, जस्टिस सपना मल्ल और जस्टिस तेज बहादुर केसी की मौजूदगी वाली पीठ ने 17 जनवरी से 19 फरवरी तक सुनवाई की, जिसपर मंगलवार को कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।
विपक्ष ने जताई खुशी
एक बार फिर से संसद की बहाली को लेकर विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताई है। पुष्पकमल दहल प्रचंड के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी और विपक्षी नेपाली कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।
इधर, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान ओली के फैसले के बचाव के लिए पेश अधिवक्ताओं ने कहा, उनकी पार्टी के कुछ नेता समानांतर सरकार बनाने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए देश को संकट से बचाने के लिए संसद को भंग करने का विकल्प ही सबसे सही था।
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इस संबंध में जनवरी में ओली ने शीर्ष न्यायालय को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि विरोधी उन पर इस्तीफा देने का लगातार दबाव डाल रहे थे। ऐसे में उनके लिए कार्य करना और विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करना मुश्किल हो गया था।
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