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म्यांमार : रोहिंग्या मुस्लिमों को मारी जा रही गोली, बांग्लादेश में भी पनाह नहीं

locationनई दिल्लीPublished: Aug 28, 2017 09:11:00 pm

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dinesh mishra1

म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है। यहां तकरीबन 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं। इन्हें अवैध बांग्लादेशी प्रवासी माना जाता है।

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 नई दिल्ली/ यंगून: म्यांमार में एक बार फिर सांप्रदायिक हिंसा भडक़ उठी है। अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुस्लिमों और बौद्ध कट्टरपंथियों के बीच हिंसा में अब तक 100 से ज्यादा लोगों को जान गंवानी पड़ी है। हजारों अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुस्लिम सेना से जान बचाने के लिए पड़ोसी बांग्लादेश की ओर पलायन कर रहे हैं। हालांकि, बांग्लादेश के सीमा सुरक्षा बल उन्हें वापस म्यांमार की ओर खदेड़ रहे हैं। इस बीच म्यांमार में आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया है। चर्चित नेता आंग सान सूकी ने रोहिंग्या विद्रोहियों पर संकटग्रस्त रखाइन प्रांत में हालिया हिंसा के दौरान घरों को जलाने और बच्चों को बतौर सैनिक इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है। वहीं, विद्रोही समूह अराकान रोहिंग्या सॉल्वेशन आर्मी (एआरएसए) ने पलटवार करते हुए आरोप लगाया कि म्यांमार के सैनिकों के साथ राखिन (बौद्ध) कट्टरपंथियों ने रोहिंग्या गांवों पर हमला किया, संपत्ति लूट ली और घरों को जला दिया। कहा जा रहा है कि सैनिक रोहिंग्या मुसलमानों पर हमले में हेलिकॉप्टर का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीं, बताया जा रहा है कि कुछ स्थानीय बौद्धों और हिंदुओं ने अन्य शहरों और मठों में शरण ली है।
ऐसे शुरू हुई हिंसा
दरअसल, रोहिंग्या विद्रोहियों ने शुक्रवार को तीस पुलिस थानों पर हमले किए जिसके बादसे हिंसा जारी है। वहीं, पोप फ्रांसिस ने अपील की है कि पोप फ्रांसिस ने अपील की है कि रोहिंग्या मुसलमानों का शोषण बंद होना चाहिए।

कौन हैं रोहिंग्या
म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है। यहां तकरीबन 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं। इन्हें अवैध बांग्लादेशी प्रवासी माना जाता है। वहीं सरकार ने इन्हें नागरिकता देने से इनकार कर दिया है। रखाइन प्रांत में 2012 से सांप्रदायिक हिंसा जारी है। इस हिंसा में बड़ी संख्या में लोगों की जानें गई हैं और एक लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं।
3000 ने ली है बांग्लादेश सीमा पर गांवों और कैंपों में शरण
हाल के दिनों में तकरीबन तीन हजार रोहिंग्या बांग्लादेश पहुंचने में कामयाब रहे हैं जहां उन्होंने कैंपों और गांवों में शरण ली है। एक सत्तर वर्षीय बुज़ुर्ग ने बताया कि उनके दोनों बेटों की हथियारबंद बौद्ध समूहों ने हत्या कर दी और उन्हें सीमा की ओर खदेड़ दिया।मोहम्मद जफर ने बताया कि वे लाठियों और डंडों के साथ आए और हमें सीमा की ओर खदेड़ दिया।

सूकी पर उठ रहे सवाल
म्यांमार में 25 वर्ष बाद पिछले साल चुनाव हुआ था। इस चुनाव में नोबेल विजेता आंग सान सूकी की पार्टी नेशनल लीग फोर डेमोक्रेसी को भारी जीत मिली थी। आरोप है कि मानवाधिकारों की वकालत करने वालीं सूकी इस मसले पर खामोश हैं। सूकी भले ही नेता हों, मगर सुरक्षा का जिम्मा सेना के हाथों में हैं। अगर वह कोई कदम उठाती हैं तो सेना से टकराव की स्थिति बन सकती है।

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