अचानक ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान ने बदल दिया अपना पुराना राग।
कई महीनों से बैक चैनल से की जा रही कोशिशें अब जाकर हुईं कामयाब।
पाकिस्तान के सामने एक नहीं कई कारण हैं, जिसके चलते उसे झुकना पड़ा।
Pakistan new face is result of diplomatic move from Dubai to Kabul
आनंद मणि त्रिपाठी/नई दिल्ली। अगर आप यह सोच रहे हैं कि पाकिस्तान अचानक से शुक्रवार को सुधर गया तो आप सरासर गलत हैं। यह महज इत्तेफाक नहीं है। इसके पीछे कई महीने की कूटनीतिक मेहनत और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक सोच है। पिछले चार महीनों से बैक चैनल से प्रयास किए जा रहे थे। नवंबर 2020 से संयुक्त अरब अमीरात (दुबई) और अफगानिस्तान (काबुल) में सीमा पर शांति को लेकर विभिन्न स्तर पर कई बार वार्ता हुई। इसके बाद यह 25 फरवरी को फलीभूत हुआ।
इसका संकेत 3 फरवरी को पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के बयान से समझ सकते हैं। पाकिस्तानी वायुसेना प्रशिक्षण संस्थान, रिसलपुर नौशेरा में बाजवा ने कहा था कि हम भारत—पाकिस्तान के मुद्दों का सम्मानजनक समाधान और शांति चाहते हैं। यह वही पाकिस्तान है जो उरी हमले के दिए जवाब से तिलमिला गया था और पिछले चार सालों से लगातार ही भारत के खिलाफ जहर उगल रहा था। ऐसे में यह बदला बयान यों ही नहीं था।
वहीं, भारत का भी रुख सकारात्मक रहा। सहजता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि भारतीय सैन्य प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने गुरुवार को ही पत्रकारों से नई दिल्ली में बात करते हुए एक सवाल के जवाब में कहा था कि पश्चिम के पड़ोसी ने पिछले नौ महीने में कोई ऐसी हरकत नहीं की जिससे यह लगे कि वह चीन की सहायता कर रहा है। वह जो कर रहे थे वह लगातार वैसे चल रहा था। चीन और पाकिस्तान के बीच कोई सांठगांठ नहीं दिखाई दी और न ही किसी प्रकार का सैन्य बढ़ावा कहीं देखने को मिला।
भारत—पाकिस्तान संबंधों के विशेषज्ञ आदित्य राज कौल कहते हैं कि दोनों तरफ से चीजें बैक-एंड में चल रही हैं। जहां तक उन्हें पता है कि अभी पाकिस्तान से कुछ और बेहतर सूचनाएं मिलने की उम्मीद है। अब अगर आप इसके कारण पर बात करते हैं तो अमरीका निश्चित रूप से एक तत्व है और दूसरा कोरोना वायरस के कारण पाकिस्तान में बदले हालात। एफएटीएफ का दबाव भी अलग है। पाकिस्तान ग्रे में रहेगा या फिर बाहर किया जाएगा। आज लिस्ट आ जाएगी।
अमरीका में प्रशासनिक बदलाव का असर अमरीका का प्रशासन बदल गया है। अमरीका अफगानिस्तान में शांति चाहता है। ऐसे में वह एक बार फिर से पाकिस्तान को टेबल पर ला रहा है। पाकिस्तान टेबल पर आए और भारत के साथ रिश्ता न बिगड़ जाए। ऐसे में अमरीका पीछे से भारत के साथ पाकिस्तान को शांति वार्ता को शुरू करने और शांति को मूर्त रूप देने के लिए आगे बढ़ा रहा है।
फिर भी सावधानी जरूरी… भारत—पाकिस्तान के बीच एक तरफ संबंध बढ़ने की तरफ चल पड़े हैं। वहीं, दूसरी तरफ खुफिया एजेंसियों ने जम्मू—कश्मीर को सतर्कता के मोड पर डाल दिया है। खबर है कि पाकिस्तान गर्मी में कश्मीर में दंगे भड़काना, हिंसा करवाना और पत्थरबाजी का चलन तेज करने पर काम कर रहा है। ठीक 2018—19 की तरह।
यों नहीं था मीडिया मैच भारत के मीडिया और पाकिस्तान उच्चायोग अधिकारियों के बीच पिछले सप्ताह हुआ क्रिकेट मैच यों ही नहीं था। यह भी कूटनीति का तरीका है। निश्चित रूप से इस तरह का मैच बिना उच्च स्तर से मिली हरी झंडी के बिना नहीं हुआ होगा। इस मैच में पाकिस्तान उच्चायोग ने जीत दर्ज की।
इन पांच बातों से समझा पाकिस्तान भारतीय सेना में चुशुल बेस में कमांड कर चुके कर्नल (रि.) दानवीर सिंह साफ कहते है कि चीन को भारत ने जवाब दिया और फिर चीन झुका। फिर चीन ने जिस तरीके से अपने सैनिकों की मौत की बात स्वीकार की। इससे पाकिस्तान को यह बात समझ में आ गई कि जब चीन चुनौती नहीं दे पाया तो हम कितने दिनों तक भारत के साथ धक्का-मुक्की करने में सक्षम हैं।
दूसरी बात एफएटीएफ का दबाव। तीसरा अंतराष्ट्रीय दबाव। चौथा और सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक दबाव। जिससे पाकिस्तान ने बखूबी समझा कि वह भारत के सामने बहुत समय तक अपने आर्थिक संसाधन व्यय नहीं कर सकता। जितनी फौज तैनात और गोला बारूद का उपयोग करेगा उतना ही नुकसान होगा।
पांचवीं बात बालाकोट और 5 अगस्त के बाद युद्धविराम उल्लघंन नई उंचाईयों तक चला गया था। 2019 में 3168 और 2020 में 4645 और इसका सबसे ज्यादा नुकसान पाकिस्तान को उठाना पड़ा था। तस्वीरें गवाह हैं। ऐसा कब तक चलेगा। पाकिस्तान समझ गया और फिर वह अब नई टेबल पर है।
संकेत जो समझाते हैं पूरी कहानी गर्मी की आहट के साथ ही चार साल बाद भारत—पाकिस्तान के बीच जमी बर्फ पिछलने लगी थी। हालांकि इसका अंदाजा तक कोई नहीं लगा पाया, फिर चाहे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को भारतीय वायु क्षेत्र में अनुमति देने की बात हो या फिर खैबर पख्तूनवा के पाकिस्तानी वायुसेना प्रशिक्षण केंद्र से आया जनरल बाजवा का बयान।
यह सबसे पहला कदम था जब 2 फरवरी को पाकिस्तान बेहद सहज और पूरे ही लहजे में बात कर रहा था। दूसरा संकेत यह था कि 3 फरवरी को बाजवा का बयान बहुत ही प्रमुखता के साथ छापा गया। इसके ठीक बाद 5 फरवरी को लेकर वहां की सरकार के उच्चाधिकारियों ने कश्मीर सॉलिडरिटी डे मनाए जाने को पूरी बकवास बता दिया।
यह पाकिस्तान के झुकने का तीसरा संकेत था। इस बयान के साथ ही एलओसी पर होने वाला संघर्ष विराम का उल्लंघन कम हो गया। चौथा संकेत यह रहा कि पिछले साल सार्क की बैठक में कश्मीर को लेकर हंगामा मचाने वाले इमरान खान के विशेष सहायक डॉ. फैसल सुल्तान इस बार कोविड को लेकर हुई बैठक में नजर नहीं आए।
अंत में पांचवां और सबसे महत्वपूर्ण संकेत की भारत ने इमरान खान को भारतीय वायु क्षेत्र में उड़ान भरने की अनुमति दे दी थी। गौरतलब है कि सितंबर 2019 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को यूरोप के लिए और अक्टूबर 2019 में प्रधानमंत्री को संयुक्त अरब अमीरात जाने की लिए अपने वायु क्षेत्र के लिए अनुमति नहीं दी थी।
डोभाल पर था दरोमदार अमरीका में राजनीतिक बदलाव के साथ दुनिया का प्रशासनिक ढांचा भी बदलने लगा है। अमरीका ने यों तो इस द्विपक्षीय मामलें में सामने से तो नहीं, लेकिन पाकिस्तान को दो टूक संकेत दे दिया था कि मामला सुलझाओ। यही वजह है कि पाकिस्तान ने वर्चस्व रखने वाली सेना के सबसे ताकतवार व्यक्ति जनरल बाजवा ने 2 फरवरी को रुख में नरमी का संकेत दिया।
हालांकि इससे पहले ही नवंबर में जमीन तैयार करनी शुरू कर दी गई थी। भारत की तरफ से एनएसए अजीत डोभाल ने तो पाकिस्तान की तरफ से एनएसए के काउंटर पार्ट और पाकिस्तान में इमरान सरकार के विशेष सहायक मोईद यूसूफ ने स्थिति को संभाला। बैक चैनल में हो रही इस वार्ता की हर जानकारी गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर को थी।