पिता ने मरते दम तक अपने वसूलों से कभी समझौता नहीं किया उन्होंने बताया कि जो टैक्सी वह चलाती हैं। उसे लोन पर लिया गया है। ताहिरा कहती हैं कि हबीब जालिब की बेटी होने के बावजूद उन्हें टैक्सी चलाने में कोई शर्म नहीं आती है क्योंकि उनके पिता ने मरते दम तक अपने वसूलों से कभी समझौता नहीं किया। ताहिरा ने बताया कि उनकी मां को पहले 25 हजार रुपये का वजीफा मिलता था,जिसे पंजाब प्रांत की तत्कालीन शहबाज शरीफ सरकार ने 2014 में बंद कर दिया था। सरकार उनकी मां को यह वजीफा कवि कोटे के तहत देती थी। उन्होंने बताया कि उनकी मां के निधन से पहले ही सरकार ने यह पेंशन देना बंद कर दिया।
इंसान और इंसानियत के कवि थे ताहिरा ने अपनी माली हालत बताते हुए सरकार से गुजारिश की कि वह पेंशन फिर से शुरू करे। बता दें कि हबीब जालिब इंसान और इंसानियत के कवि थे। उनका तेवर खालिस इंक़लाबी था। हबीब जालिब को तो हुक्मरानों को कई बार अपनी लेेखनी के कारण जेल भी जाना पड़ा। हबीब जालिब का जन्म 24 मार्च 1928 को पंजाब के होशियारपुर में हुआ था। भारत के बंटवारे को हबीब जालिब नहीं मानते थे। लेकिन घर वालों की मोहब्बत में इन्हें पाकिस्तान जाना पड़ा। हबीब तरक्की पसंद कवि थे। इनकी सीधी-सपाट बातें ज़ुल्म करने वालों के मुंह पर तमाचा थीं। विभाजन के बाद हबीब जालिब पाकिस्तान चले गए थे और एक उर्दू अखबार में काम करते थे। बाद के दिनों में तरक्की पसंद कवि हबीब जालिब पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह जनरल अयूब खान के खिलाफ मजबूत आवाज के रूप में जाने गए।