सेल्युलर सेवाएं देश भर के प्रमुख शहरों में शनिवार व रविवार (9वें व 10वें मुहर्रम) को देश भर में आंशिक तौर पर निलंबित रहेंगी।
सिंध गृह विभाग ने सेल्युलर सेवाओं के करांची, हैदराबाद, शाहीद, बेनजीराबाद, खैरपुर, सुक्कर, लरकाना, शिकारपुर व जैकबाबाद में निलंबित करने का आग्रह किया है। पत्र के अनुसार, कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने जीएसएम सेवाओं के निलंबन का आग्रह किया है, क्योंकि मुहर्रम संबंधित मजलिस व जुलूस के दौरान सेल्युलर फोन/इंटरनेट के माध्यम से शरारती तत्वों द्वारा आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने की आशंका है।
सिंध गृह विभाग ने सेल्युलर सेवाओं के करांची, हैदराबाद, शाहीद, बेनजीराबाद, खैरपुर, सुक्कर, लरकाना, शिकारपुर व जैकबाबाद में निलंबित करने का आग्रह किया है। पत्र के अनुसार, कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने जीएसएम सेवाओं के निलंबन का आग्रह किया है, क्योंकि मुहर्रम संबंधित मजलिस व जुलूस के दौरान सेल्युलर फोन/इंटरनेट के माध्यम से शरारती तत्वों द्वारा आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने की आशंका है।
हालांकि, सिंध सरकार ने रैली के मार्गो पर मोबाइल सेवाओं के रोके जाने का आग्रह किया था, लेकिन कराची के निवासियों ने सोशल मीडिया पर कहा कि उन्हें जुलूस के रास्ते से दूर के इलाकों में भी सिग्नल नहीं मिल रहे हैं।
इसलिए होता है मुहर्रम
दरअसल जिस दिन हुसैन को शहीद किया गया वह मुहर्रम का ही महीना था और उस दिन 10 तारीख थी। जिसके बाद इस्लाम धर्म मानने वाले लोगों ने इस्लामी कैलेंडर का नया साल मनाना छोड़ दिया। मगर फिर बाद में मुहर्रम का महीना गम के महीने के तौर पर मनाया जाने लगा। हालांकि खुदा के बंदे हजरत मोहम्मद ने इस महीने को अल्लाह का महीना करार दिया है। जिसमें पूरे दस दिन तक मुहर्रम के रीति-रिवाजों को पूरी शिद्दत से अदा किया जाता है।
दरअसल जिस दिन हुसैन को शहीद किया गया वह मुहर्रम का ही महीना था और उस दिन 10 तारीख थी। जिसके बाद इस्लाम धर्म मानने वाले लोगों ने इस्लामी कैलेंडर का नया साल मनाना छोड़ दिया। मगर फिर बाद में मुहर्रम का महीना गम के महीने के तौर पर मनाया जाने लगा। हालांकि खुदा के बंदे हजरत मोहम्मद ने इस महीने को अल्लाह का महीना करार दिया है। जिसमें पूरे दस दिन तक मुहर्रम के रीति-रिवाजों को पूरी शिद्दत से अदा किया जाता है।
इस दिन शिया समुदाय के लोग काले कपड़े पहनते हैं, वहीं अगर बात करें मुस्लिम समाज के सुन्नी समुदाय की तो वह इस दिन तक रोजे में रहते हैं। दरअसल रमजान महीने के अलावा, मुहर्रम को सबसे पाक समय रोजे के लिए बताया जाता है। हजरत मोहम्मद के साथी इब्ने अब्बास के मुताबिक जिसने मुहर्रम के 9 दिन तक रोजा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ हो जाते हैं और मुहर्रम के एक रोजे का सबाब 30 रोजों के बराबर मिलता है।