इस फोरम से भारत ने एक बार फिर आतंकवाद पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। उसका कहना है कि पाकिस्तान जब तक आतंकवाद को समर्थन और पनाह देना बंद नहीं करता है तब तक पड़ोसी के साथ बातचीत मुमकिन नहीं है। जनवरी 2016 में भारत के पठानकोट एयरबेस पर हमला, पुलवामा में आत्मघाती हमला दर्शाता है कि पाकिस्तान अपना छद्म युद्ध जारी रखेगा। मगर भारत ने पाक को दो टूक संदेश दिया है कि जब तक वह जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तयब्बा जैसे आतंकी संगठनों पर पुख्ता कार्रवाई नहीं करता है, तब तक मेल-मिलाप की कोई गुंजाइश नहीं है।
पीएम मोदी ने अपने शपथग्रहण समारोह में इस बार पाकिस्तान को न्योता नहीं दिया। इसके बावजूद पाकिस्तान के पीएम इमरान खान लगातार बातचीत का आग्रह कर रहे हैं। उन्होंने पहले पीएम को फोन और ट्वीटर पर बधाई दी। इसके बाद पत्र लिखकर बातचीत की शुरुआत करने को कहा। मगर पाकिस्तान की गतिविधियों के कारण उसकी नीयत पर सवाल उठते हैं। बीते दिनों दिनों जम्मू-कश्मीर में सीमा रेखा पर पाकिस्तान की ओर से फायरिंग बढ़ गई है। पाक की गोलीबारी में भारत का एक जवान शहीद भी हो गया।
पाकिस्तान के लिए कश्मीर मुद्दा सबसे अहम रहा है। हर मौके पर वह इसे उठाने की कोशिश करता है। मगर इस बार इमरान ने कश्मीर का प्रत्यक्ष जिक्र नहीं किया। हालांकि उन्होंने इशारों-इशारों में अपने संबोधन में जम्मू-कश्मीर का अप्रत्यक्ष जिक्र किया और कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद के हर रूप की निंदा करता है, इसमें सरकार प्रायोजित आतंकवाद भी शामिल है।
पाकिस्तान का इतिहास रहा कि वह भारत से एक तरफ बातचीत का ढोंग रचता है। वहीं दूसरी तरफ वह आतंकी घटना के सहारे भारत को नुकसान पहुंचाने में लगा है। इस कड़ी की शुरुआत पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की चर्चित लाहौर बस यात्रा से ही शुरू हुई। बस यात्रा के कुछ ही महीनों के बाद पाकिस्तान ने करगिल का युद्ध छेड़ दिया। इसके बाद पाक ने भारत पर कई आतंकी हमले भी करवाए। मुंबई हमला, संसद भवन हमला, पठानकोट अटैक जैसी घटनाएं पाकिस्तान के बदनीयत इरादों की ओर इशारा करतीं हैं। पाकिस्तान अब इतना बदनाम हो चुका है कि उसे आतंकवद का पर्याय समझा जाता है। ऐसे में मोदी की कूटनीति कितनी असरदार होती है, यह पाकिस्तान का रुख तय करेगा।