ऐसे शुरू हुआ था विवाद
देश में राजनीतिक संकट तब शुरू हुआ, जब सिरिसेना ने शुक्रवार को संसद भंग कर दिया और पांच जनवरी को जल्द चुनाव कराने की घोषणा कर दी। इसके दो सप्ताह पहले उन्होंने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया था और उनकी जगह पर महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था। सिरिसेना ने उसके तत्काल बाद एक कार्यवाहक सरकार का गठन किया, जिसे विक्रमसिंघे की युनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) ने अवैध करार दिया। संसद का कार्यकाल अभी डेढ़ साल बाकी है, फिर भी राष्ट्रपति ने अचानक संसद को भंग कर दिया। सिरिसेना ने कहा है कि संसद भंग कर चुनाव कराने की घोषणा उन्होंने देश की सड़कों पर और संसद में हिंसा भड़कने से बचाने के लिए की।
इन दलों ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी याचिका
जिन दलों ने राष्ट्रपति के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है, उनमें यूएनपी, मुख्य विपक्ष तमिल नेशनल अलायंस, जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी), तमिल प्रोग्रेसिव अलायंस और आल सिलोन मक्कल कांग्रेस शामिल हैं। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद जेवीपी के सांसदों ने संसद अध्यक्ष कारू जयसूर्या से मुलाकात की और उनसे यथासंभव जल्द से जल्द संसद की बैठक बुलाने का आग्रह किया। विक्रमसिंघे ने अपने सांसदों से कहा कि वह किसी भी समय संसद में बहुमत साबित करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने उनसे यह भी कहा कि वे बुधवार को संसद की बैठक में हिस्सा लेने के लिए तैयार रहें।