पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार पाकिस्तान उलेमा काउंसिल (PUC) ने कहा है कि पाकिस्तान का संविधान देश में रह रहे मुसलमानों और गैर-मुस्लिमों के अधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। इस में समूह में कई इस्लामी धर्मगुरू और विभिन्न इस्लामी परंपराओं के कानूनविद शामिल हैं।
PUC के अध्यक्ष हाफिज मोहम्मद ताहिर महमूद अशरफी का कहना है कि हम मंदिर निर्माण को लेकर उठे विवाद की निंदा करते हैं। रूढ़िवादी धर्मगुरूओं द्वारा ऐसा किया जाना और इसे विवादित बनाने का प्रयास करना ठीक नहीं है। पीयूसी एक बैठक बुलाएगी और इस्लामी विचारधारा परिषद (CII) के सामने अपनी बात को रखेगी।
CII एक संवैधानिक निकाय है। इसका काम पाकिस्तान सरकार को इस्लामी मुद्दों पर कानूनी सलाह देना है। पाकिस्तान के धार्मिक मामलों के मंत्रालय ने कुछ मुस्लिम समूहों के विरोध के बीच राजधानी में मंदिर निर्माण के लिए सरकार द्वारा अनुदान देने पर सीआईआई को पत्र लिखकर उसकी राय मांगी है।
धार्मिक मामलों के मंत्री नूरुल हक कादरी का कहना है कि मंदिर के निर्माण को लेकर कोई समस्या नहीं है, लेकिन असली मुद्दा यह है कि क्या इसे जनता के पैसे से बनाया जा सकता है। सरकार ने कृष्ण मंदिर के निर्माण में सहयोग के लिए 10 करोड़ रुपये के अनुदान को मंजूरी दी है। इसका निर्माण राजधानी के एच-9 प्रशासनिक खंड में 20,000 वर्ग फुट के भूखंड पर किया जाना है।
मंदिर निर्माण के खिलाफ फतवा जारी पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में पहला मंदिर बनाने के ऐलान के बाद ही हंगामा शुरू हो गया। कई कट्टरपंथी धार्मिक संस्थाओं ने सरकार के फैसले का विरोध कर इसे इस्लाम विरोधी तक करार दिया है। कुछ समय पहले ही इस मंदिर के निर्माण की आधारशिला रखी गई थी। इसके निर्माण के लिए इमरान खान सरकार ने 10 करोड़ रुपये देने का ऐलान किया है।
सरकारी धन के खर्च पर बवाल मजहबी शिक्षा देने वाले संस्थान जामिया अशर्फिया के अनुसार गैर मुस्लिमों के लिए मंदिर या अन्य धार्मिक स्थल बनाने में सरकारी धन खर्च गलत है। इसी संस्था ने मंदिर निर्माण को लेकर फतवा जारी किया और कहा कि अल्पसंख्यकों (हिंदुओं) के लिए सरकारी धन से मंदिर निर्माण में कई सवाल खड़े हुए हैं।