“सीरिया सिविल वॉर मामले में प्रारंभिक वार्ता से निकले निष्कर्ष के आधार पर शांति वार्ता को अभी और समय दिया जाना चाहिए”
जिनेवा। पिछले कई सालों से हिंसक गृहयुद्ध से जूझ रहे पश्चिम एशियाई देश सीरिया में शांति स्थापित करने को होने वाली यूएन की वार्ता टल गई है। संयुक्त राष्ट्र ने इस शांति वार्ता को 25 फरवरी तक के लिए “अस्थायी विराम” दे दिया है।
संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत स्टाफन डि मिस्तूरा ने घोषणा की है कि सीरिया सिविल वॉर मामले में प्रारंभिक वार्ता से निकले निष्कर्ष के आधार पर शांति वार्ता को अभी और समय दिया जाना चाहिए। बता दें कि यह वार्ता स्विट्जरलैंड के जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय में आज होनी थी। लेकिन अब इसके 25 फरवरी को होने की संभावना है। हालांकि मिस्तूरा ने यह भी साफ किया कि यह अस्थायी विराम शांति-वार्ता का अंत या विफल होना नहीं है।
क्यों नहीं रुक रहा सीरियाई गृहयुद्ध?
– सीरिया में पीस प्रोसेस के सारे एफर्ट अभी तक नाकाम हुए हैं। जबकि वहां राष्ट्रपति शासन है, मगर विद्रोहियों और आतंक के चलते हिंसा कायम है। अमरीका-रूस जैसी वैश्विक महाशक्तियां वहां शांति स्थापित कराने के बहाने दो धुरों में ताकत प्रदर्शन कर रही हैं।
-जहां अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और तुर्की जैसे देश सीरिया में विद्रोहियों का साथ दे रहे हैं वहीं रूस और ईरान जैसे देश खुलकर असद सरकार के समर्थन में हैं। इसी बीच आतंकी संगठन आईएस और अन्य चरमपंथी गुटों का सीरिया के अधिकतर हिस्सों पर डेरा डला हुआ है।
– यूएन के हस्तक्षेप के बाद जहां अमेरिका इस देश में मौजूदा सरकार को भंग करा पुन: लोकतंत्र स्थापित कराने के तर्क देता है, वहीं रूस का कहना है कि सीरिया में पहले से ही चुनी हुई सरकार है तो तानाशाही कहां की। कुछेक विद्रोहियों और आईएस के हमलों के कारण स्थिति बिगड़ी हुई है।
– यूएन के प्रस्ताव और शांति कायम करने के प्रयासों की अगुवाई का चोला लिए ये दोनों ताकतवर धुरियां सैन्य हस्तक्षेप कर चुकी हैं। जिसके चलते नॉटो गुट के सैनिक और रूसी सेना सीरिया में आतंकियों के कैम्प नष्ट करने में लग हैं।
– हालांकि सीरियाई सरकार का आरोप है कि अमरीकी समर्थित सैन्य दल आतंकियों के साथ ही विद्रोहियों को निशाना बना रही हैं, वहीं अमरीका रूस पर आम नागरिकों पर हमले करने के आरोप लगाता है। यानी फिलवक्त सीरिया युद्ध और हिंसा का केंद्र बनकर रह गया है।
लीबिया, मिस्र और कई देशों में भी हुआ था ऐसा-
सीरिया में सिविल वॉर नया नहीं है, इससे पहले भी इस क्षेत्र के कई अफ्रीकी व एशियाई देश जूझते रहे हैं। जहां लीबिया में कर्नल मुअहम्मद गद्दाफी का जनाविरेाधी शासन था वहीं मिस्र में होस्नी मुबारक की तानाशाही भी जनता ने नकार दी। कुवैत और ईराक में भी ऐसे हिंसात्मक आंदोलन हुए हैं। अमेरिका का मानना है कि लीबिया की तरह सीरियाई लोग भी असद सरकार से नाखुश हैं और वहां लोकतांत्रिक पुर्नस्थापना की जरूरत है।
“पीस टाल्क्स” से होगी शांति कायम?
सीरियाई सरकार यूएन द्वारा शांति प्रयासों के लिए होने वाली वार्ता में हिस्सा लेने को राजी है। हालिया बैठक में “पीस टाल्क्स” को आगे बढ़ाने पर जोर दिया गया था। मिस्तूरा के मुताबिक पहले हफ्ते की प्रारंभिक वार्ता के दौरान उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला है कि अभी उनके और अन्य हितधारकों के द्वारा काफी काम किया जाना बाकी है। यानी वार्ता में असद समर्थकों और विद्रोहियों के बीच सेतु स्थापित करने की कोशिशें हो सकती हैं। इस दौरान बाहरी हस्तक्षेप व आतंकियों को रोकने के लिए नए प्रस्ताव भी आ सकते हैं।