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Beijing में कोरोना मामले की जांच के लिए अपनाया जा रहा ये तरीका, दो तरह के टेस्टों को मिली मंजूरी

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90 हजार मरीजों का कोरोना टेस्ट (Coronatest) होगा, न्यूक्लिक एसिड टेस्ट (nucleic acid test) को लेकर चीन ज्यादा आश्वस्त ।
न्यूक्लिक एसिड टेस्ट के पॉजिटिव होने पर आइसोलेशन (Isolation) और इलाज की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

नई दिल्लीJun 16, 2020 / 11:44 am

Mohit Saxena

चीन में न्यूक्लिक एसिड टेस्ट के जरिए जांच हो रही है।

बीजिंग। चीन में दोबारा कोरोना वायरस के मामले बढ़ते जा रहे हैं। अब तक पूरे देश में 100 नए केस सामने आ चुके हैं। खासकर बीजिंग में संक्रमण का खतरा (coronavirus cases in Beijing) बढ़ता जा रहा है। यहां पर रविवार को अचानक 57 मामले सामने आने के बाद से हड़कंप मच गया। प्रशासन और स्वास्थ्य कर्मियों की फौज ने पूरे बीजिंग में कोरोना से निपटने की तैयारी कर ली है। अब सरकार ने तय किया है कि वह 90 हजार लोगों का टेस्ट करेंगी। इसके लिए उसने लोगों का न्यूक्लिक एसिड टेस्ट (nucleic acid test) करना शुरू कर दिया है।
फिलहाल कोरोना के टेस्ट के लिए Food and Drug Administration (FDA) ने 2 तरह के टेस्ट को मंजूरी दी है। इनमें से पहला है न्यूक्लिक एसिड टेस्ट। वहीं दूसरा तरीके को एंटीबॉडी टेस्ट कहा जाता है। इसे सेरोलॉजी जांच भी कहते हैं। हालांकि पहला ही तरीका ज्यादा चलन में है।
न्यूक्लिक एसिड टेस्ट में तहत मरीज का रेस्पिरेटरी सैंपल लिया जाता है। इसमें नाक और गले से नमूना लेते हैं। गले के भीतर से जैसे बलगम का या फ्लूइड को सैंपल के तौर पर लिया जाता है। इस तरह से जांच का नतीजा सटीक आता है। ये तरीका न्यूमोनिया के मरीज की जांच के लिए भी अपनाया जाता है।
न्यूक्लिक एसिड टेस्ट के पॉजिटिव होने पर आइसोलेशन और इलाज की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। हल्के लक्षणों वाले मरीजों को घर पर ही इलाज दिया जाता है। वहीं स्थिति अगर गंभीर हो तो मरीज को अस्पताल में भर्ती करना होता है।
टेस्ट के दूसरे तरीके यानी एंटीबॉडी टेस्ट में ब्लड सैंपल लिया जाता है। अगर कोई बीमार के संपर्क में आया हो और ठीक हो गया हो तो उसके शरीर में इसके लिए एंटीबॉडी ली जाती है। संदिग्ध के ब्लड सैंपल को एक खास एंटीजन से मिलाया जाता है। अगर मरीज के शरीर में एंटीबॉडी होती है तो वो एंटीडन से जुड़ जाती है और सैंपल का कलर चेंज हो जाता है।
इसका अर्थ होता है कि शख्स संक्रमण से ग्रस्त रह चुका है। ये तय करता है कि मरीज कभी बीमार पड़ा होगा, मगर वह बिल्कुल ठीक हो चुका है।
वैसे फिलहाल कोरोना के मरीजों की जांच के लिए एंटीबॉडी टेस्ट उतना असरदार नहीं है। क्योंकि एंटीबॉडी बनने में 1 से 2 हफ्ते का वक्त का समय लगता है। इस दौरान मरीज में संक्रमण खतरनाक स्तर तक पहुंच सकता है। कोरोना के मामले में फिलहाल ये भी पता नहीं लग सका है कि एक बार वायरस के संपर्क में आने से मरीज कितने दिनों तक सुरक्षित रह सकता है। इस तरीके पर भरोसा करने के बाद किसी को दोबारा एक्सपोज होने के लिए छोड़ना भी खतरनाक हो सकता है।
थोक मार्केट में मछली काटने के बोर्ड पर कोरोना वायरस मिलने के बाद से अब तक 29,386 लोगों का टेस्ट हो चुका है। न्यूक्लिक एसिड टेस्ट में तय हुआ है कि अगले 2 दिनों में पूरे 90 हजार टेस्ट हो जाएंगे। गौरतलब है कि शिनफादी बाजार जहां मामला आया है, वो 112 हेक्टेयर तक फैला है। यहां पर 30 मई से लेकर अब तक 2 लाख से ज्यादा रिटेल व्यापारी और आम लोग भी आ चुके हैं। यही वजह है कि चीन की सरकार की चिंता बढ़ गई है।

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