एशिया

सिर्फ अलग दिखने की वजह से हजारा समुदाय के लोगों पर होते हैं हमले!

पाकिस्तान और अफगानिस्तान में हजारा समुदाय के लोगों पर हमलों की खबरें लगातार आती रहती हैं।

May 07, 2018 / 07:08 pm

Saif Ur Rehman

नई दिल्ली : आतंक का पनाहगाह कहे जाने वाले पाकिस्तान में आए दिन अल्पसंख्यकों पर हमले की खबरें आती ही रहती हैं। अब वहां पर हजारा शिया समुदाय के लोगों को भी लगातार निशाना बनाया जा रहा है। हाल ही में हजारा समुदाय के लोगों को मौत के घात उतार दिया गया है। अशांत बलूचिस्तान प्रांत में अज्ञात बंदूकधारियों ने हजारा समुदाय के तीन लोगों की गोली मार कर हत्या कर दी थी। करीब साढ़े पांच लाख की आबादी वाले शिया मुसलमान गुस्से से भरे पड़े हैं। हिंसा के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए वे सड़क पर उतर आए हैं। इस हमले के बाद हजारा समुदाय ने जमकर प्रदर्शन किए। हजारा समुदाय की महिलाओं ने अनशन पर बैठ गई। पाकिस्तान की सेना के प्रमुख कमर बाजवा जावेद के दखल के बाद उन्होंने अपने प्रदर्शन को रोका । बता दें कि अधिकतर हमले पाकिस्तान के क्वेटा में हुए हैं। अफगानिस्तान में भी हजारा समुदाय पर हमलों की खबरें आती रहती हैं। इन हमलों में सुन्नी आतंकी समूह लश्कर-ए-झंगवी और तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान का हाथ सामने आया है। लश्कर-ए-झंगवी को पाकिस्तान और अमरीका की तरफ से एक आतंकी संगठन करार दिया गया है। इसे कई बार शिया लोगों पर जानलेवा हमलों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा चुका है। वैसे विशेषज्ञ मानते हैं कि सिर्फ पाकिस्तान के सियासी लोग ही हजारा समुदाय के साथ हो रहे नरंसहार, भेदभाव को रोक सकते हैं। आप को यहां ये भी बताते चलें कि पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने बताया था कि 2013 में 509 हजारा समुदाय के लोगों को बिना वजह मार दिया गया था।
 

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कौन है हजारा समुदाय के लोग ?

अफगानिस्तान में हजारा समुदाय बड़े अल्पसंख्यक हैं। अफगानिस्तान में करीब 10 फीसदी हजारा समुदाय के लोग हैं। इन्हें मंगोल साम्राज्य के संस्थापक चंगेज खान का वंशज माना जाता है। समझा जाता है कि हिन्दुस्तान पर चंगेज खान और बाद में मुगल आक्रमण के वक्त हजारा समुदाय तेजी से फैला। वे मुसलमानों के शिया पंथ को मानते हैं और अपने खास नैन नक्श की वजह से आसानी से पहचाने जा सकते हैं। इसलिए सुन्नी चरमपंथियों को उन्हें निशाना बनाने में आसानी होती है। करीब 200 वर्ष पहले ब्रिटिश भारत में हजारा समुदाय के लोग अफगानिस्तान से पाकिस्तानी हिस्से में पहुंचे, ब्रिटिश सरकार ने उनका इस्तेमाल अफगानिस्तान के खिलाफ लड़ाई में भी किया। भारत से अलग होने के बाद सुन्नी राष्ट्र पाकिस्तान ने हजारा समुदाय को कभी नहीं अपनाया।

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