नि:स्पृहो नाधिकारी स्यान्नाकामो मण्डनप्रिय:।
नाऽविदग्ध: प्रियं ब्रूयात् स्पष्टवक्ता न वञ्चक:।।
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बिना फल की चाह रखते हुए जो व्यक्ति किसी की मदद करता है वो कभी धोखा नहीं दे सकता है। चाणक्य कहते हैं कि जिसे कुछ पाने की लालसा नहीं होती वो निस्वार्थ भावना के साथ काम करता है। इसलिए ऐसा व्यक्ति किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकता है।
— लालच
चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में बताया कि किसी भी व्यक्ति के करीब जाने से पहले यह देख लेना चाहिए कि वह किसी लालच से तो नहीं जुड़ा है। नीति शास्त्र के अनुसार, लालची व्यक्ति ज्यादा समय तक साथ नहीं देते हैं। ऐसे में लालची लोगों से हमेशा सावधान और बचकर रहना चाहिए।
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चाणक्य कहते हैं कि धोखे से बचने का सबसे बड़ा हथियार मोह यानी खुद पर काबू रखना है। चाणक्य के मुताबिक, व्यक्ति को किसी भी इंसान से ज्यादा लगाव या मोह नहीं रखना चाहिए। अगर संबंध दोनों तरफ बराबरी के न हो तो धोखा मिलना तय होता है।
चाणक्य का कहना है कि व्यक्ति को कभी भी दूसरों को अपनी कमजोरी नहीं बतानी चाहिए। क्योंकि विरोधी आपकी कमजोरी का फायदा उठाते हैं और मौका पाकर आपको धोखा देते हैं। ऐसे में सबसे सामने कमजोरी को उजागर करने से बचना चाहिए।
चाणक्य नीति के अनुसार, ज्ञानी व्यक्ति जीवन में हर काम सोच-समझ करते हैं। ऐसे में बुद्धिमान व्यक्ति के पास परिस्थितियों को समझने की क्षमता ज्यादा होती है। चाणक्य का मानना है कि ज्ञानी लोगों के धोखा खाने की संभावना कम होती है।
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— सच
चाणक्य कहते हैं कि झूठ बोलने वाले व्यक्ति को अंत में निराशा हाथ लगती है। ऐसे में व्यक्ति को हमेशा सच बोलना चाहिए। नीति शास्त्र के अनुसार, सच के रास्ते पर कठिन होता है, लेकिन ऐसे व्यक्ति पर ईश्वर की कृपा हमेशा बनी रहती है। चाणक्य का मानना है कि अगर सच बोलने वाले व्यक्ति के साथ धोखा होता है तो वह जल्द ही इस परेशानी से निकल आता है।