प्रयाग की धरती इलाहाबाद में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम तट पर दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला लगता है। यहां देश के विभिन्न राज्यों से साथ विदेशी सैलानी भी लाखों की संख्या में आस्था की डूबकी लगाने पहंुचते हैं। यहां संगम स्नान करने आए हजारों बड़े बुजुर्ग और बच्चे अपनों से बिछड़ जाते हैं। इसमें बच्चों से कहीं ज्यादा बड़े बुजुर्ग अपनों से बिछड़ जाते हैं। माघ मेले में पिछले दो प्रमुख स्नान पर्व की बात करें तो 3 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने संगम स्नान किया।
इन दो दिनों में 13 हजार से ज्यादा लोग अपनों से बिछड़ गए। मकर संक्रांति के दिन 4777 लोग संगम स्नान के दौरान अपनों से बिछडे़। बिछड़ने वालों में महज 10 से 15 बच्चे बाकि बुजुर्ग। वहीं मौनी अमावस्या के दिन सवा 2 करोड़ से ज्यादा ने संगम स्नान किया। उस दौरान 8200 से ज्यादा लोग अपनों से बिछड़ गए। इसमें करीब 8180 बुजुर्ग थे और महज 20 बच्चे थे। हालंाकि 13 हजार में से साढ़े 12 हजार से ज्यादा लोगों को उनके परिजनों से मिलाया जा चुका है। जबकि कुछ लोगों को मिलाने का प्रयास चल रहा है।
बिछड़ने पर पहुंचे भूले भटके शिविर
माघ मेले में अपनो से बिछड़ने वालों को मिलाने के लिए भूले भटके शिविर बनाया गया है। मोबाइल नेटवर्क काम नहीं करने के कारण अपनों से बिछड़ने वाले लोग शिविर में जाकर नाम एनाउंस करवाते हैं। कई बार लोग अपनों को बुलाने के लिए स्थानीय भाषा, घर का नाम, ग्रुप में आए संस्था के लोग राम राम या अन्य शब्दों का प्रयोग करते हैं।
कोई रस्सी तो कोई डंडा पकड़ चलता है मेले में
मेले में अपनो का साथ छूटने के डर से परिवार या ग्रुप में आए लोग एक दूसरे का हाथ पकड़ कर, एक ही रस्सी पकड़ कर, एक ही डंडा पकड़ कर या महिलाएं एक दूसरे से अपनी साड़ियां बांध कर चलती हैं। इसके अलावा कई लोग डंडे में एक ही रंग के कपड़े बांध कर ऊपर उठाए चलते हैं। अशिक्षित महिला या पुरूष अपने साथ मोबाइल नंबर, घर का पता, परिजनों का नाम लिखा पर्चा लेकर चलती हैं। इसके अलावा भी कई अजीबो गरीब तरीका आपको मेले में देखने को मिल जाएगा।