शनि देव के इस तरह के व्यवहार के संबंध में शनि के भक्त व पंडित पीडी व्यास बताते हैं कि कई बार हम देवों को प्रसन्न करने के उत्साह के चलते अज्ञानतावश कुछ ऐसे कार्य कर जाते हैं जिसके कारण देव प्रसन्न न होकर अप्रसन्न हो जाते हैं। इसी स्थिति में जिन देव को हम प्रसन्न करना चाहते हैं वे रुष्ट हो जाते हैं। या कई बार सामान्य स्थिति में भी अनजाने में कभी कभी हम ऐसी गलती कर देते हैं, जिससे कुछ देव नाराज होकर हमें दंड प्रदान करते हैं।
पंडित व्यास के अनुसार कलियुग के देव शनिदेव किसी भी व्यक्ति के साथ उसके कर्मों के अनुसार दंड विधान के तहत न्याय करते हैं। वहीं शनि के इसी दंड विधान की क्रूरता के कारण ही उन्हें क्रूर ग्रह भी माना जाता है, जिसके कारण लोग शनि के नाम से ही भय खाते हैं। लेकिन शनि दंड ही नहीं आशीर्वाद भी प्रदान करते हैं। वो भी ऐसा आशीर्वाद जो अन्य देव प्रदान तक नहीं कर पाते तभी तो कहा जाता है कि शनि किसी भी व्यक्ति को फर्श से अर्श तक ले जाने में समर्थ है।
लेकिन समाज में व्याप्त शनि के खौफ के चलते हर कोई उन्हें प्रसन्न करने के चलते उन्हें तरह तरह की विधि अपनाता है। ऐसे में कई बार पूजा के दौरान उत्साह में भर कर लोग कुछ बड़ी गलतियां कर देते है। ऐसे में शनि के दंड से बचने के लिए की जाने वाली पूजा उन्हें एक और सजा या दंड का पात्र बना देती है।
यदि आप भी शनिदेव के इन अनचाहे दंडों से बचना चाहते है तो उनकी पूजा के वक्त कुछ सावधानियां अवश्य रखे, नहीं तो उनकी पूजा करने वाला भी उनके कोप का शिकार बन सकता है। सामान्यत: शनिदेव की पूजा के लिए सप्ताह में शनिवार का दिन विशेष माना गया है। ऐसे में अधिकांश भक्त शनिवार को शनि मंदिरों में पूजा के लिए जाते हैं।
जानकारों के अनुसार जो कोई भी शनिवार को शनि मंदिर जाते हैं उन्हें नियमित रूप से हर शनिवार को शनिदेव की पूजा अर्चना करना चाहिए। ऐसे में इस बात को समझ लें कि शनिदेव की पूजा के दौरान कुछ सावधानियां रखनी आवश्यक होती हैं। क्योंकि शनिदेव की पूजा में एक हल्की सी भी असावधानी शनिदेव को प्रसन्न करने की बजाय रोष में भर देती है।
1. शनिदेव के सामने नजरें नीचे रखें
ध्यान रहे कि शनिदेव की पूजा के दौरान मंदिर में शनिदेव की आंखों में कभी नहीं देखना चाहिए। साथ ही पूजा के दौरान कभी शनिदेव की मूर्ति के ठीक सामने खड़े न हो। यानि पूजा करते समय या तो आपकी आंखें बंद हों या फिर आप केवल शनिदेव के चरणों की तरफ ही देखें। मान्यता है कि शनिदेव की आंखों में देखने से शनिदेव की दृष्टि आप पर पड़ती है और ऐसे में यदि आपकी कुंडली में भी उनकी दृष्टि है तो आप उनके कोप का शिकार हो जाएंगे।
वहीं कई बार मंदिर नहीं जाने के बावजूद रास्ते में ही शनि का मंदिर होने से उनके पास से जाते समय कुछ लोग शनि देव को प्रणाम करने के दौरान या वहां मौजूद लोगों के हुजूम को देखने के दौरान गलती से शनिदेव की आंखों को भी देख लेते हैं। ऐसा करने से वे भी शनि के कोप का शिकार हो जाते हैं।
मंदिर से उल्टे पांव वापस लौटें
मान्यता के अनुसार शनिदेव की पूजा करते वक्त न तो उनके सामने तनकर खड़ा होना चाहिए। और न हीं शनि मंदिर से वापस आते समय शनि देव की ओर अपनी पीठ आनी चाहिए, माना जाता है ऐसा करने वाले से शनिदेव नाराज हो जाते हैं। यानि जब कभी आप शनिदेव की पूजा मंदिर से बाहर आ रहे हो तो मंदिर के बाहर तक उल्टे पांव (जिस अवस्था में खड़े थे उसी अवस्था में पीछे की तरफ होते आएं) वापस लौटें ऐसा करने से मंदिर से बाहर आने तक आपका चेहरा मंदिर की ओर रहेगा।
रंग का विशेष ध्यान रखें
शनि देव की पूजा के दौरान रंगों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। मान्यता है कि शनिदेव की पूजा के दौरान उनके प्रिय रंग जैसे नीले और काले वस्त्र पहन कर जाना चाहिए। इस दौरान लाल व सफेद कपड़े पहनना उचित नहीं माना जाता।
सामान्यत: हम भगवान की पूजा में तांबे के बर्तन का ही उपयोग करते हैं, लेकिन शनिदेव को तेल अर्पित करने के दौरान भूलकर भी तांबे के बर्तन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इसकी जगह शनिदेव को तेल अर्पित करने के लिए हमेशा लोहे के बर्तन का ही इस्तेमाल करना चाहिए। दरअसल तांबा सूर्य का कारक माना गया है जबकि सूर्यदेव और शनिदेव आपस में परम शत्रु हैं, अत: इससे बचना चाहिए।
शनिदेव की पूजा करते समय दिशा का विशेष ध्यान रखना खास माना जाता है। दरअसल शनि देव पश्चिम के स्वामी कहे गए हैं, ऐसे में इनकी पूजा करते वक्त साधक को पश्चिम की तरफ ही मुंह रखना चाहिए। जबकि अधिकांश देवों की पूजा पूर्व दिशा की ओर मुख करके की जाती है।
शनिदेव की पूजा के दौरान शनि मंत्र का जाप करना उचित माना जाता है। मान्यता के अनुसार ऐसा करने से शनिदेव प्रसन्न हो जाते हैं। मंत्र : ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनिश्चराय नम:।