scriptबीहड़ से गायब हुई वन्यजीव की नौ प्रजातियां | 9 species of animals disappeared from barren forest | Patrika News

बीहड़ से गायब हुई वन्यजीव की नौ प्रजातियां

locationऔरैयाPublished: Jan 13, 2018 06:48:24 pm

Submitted by:

Ashish Pandey

पंचनद के बीहड़ में पांच तरह की प्रजातियां पर बना हुआ है संकट।
 

pond turtle

pond turtle

औरैया. आज दूषित पर्यावरण और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से जीव-जंतुओं पर इसका खासा असर पड़ रहा है। वर्षों पहले जो कई जीव जंतु देखे जाते थे वे आज लुप्त होते जा रहे हैं। पंचनद के बीहड़ में वन्यजीव का जीवन संकट में है। इस इलाके में नौ प्रकार के वन्यजीव ऐसे चिह्नित किए गए हैं जो 1980 के बाद नजर नहीं आए। यही नहीं बीहड़ में पांच वन्यजीव की प्रजातियों विलुप्त होने के कगार पर हैं। यह संकट इस इलाके में विलायती बबूल बोए जाने के बाद पैदा हुआ है।
विलायती बबूल के कांटो ने गद्दीदार पैरों के जानवरों को बीहड़ में लगभग खत्म कर दिया है। सरकार पंचनद के बीहड़ों में भले लायन सफारी और चम्बल सेन्चुरी चला रही हैं, लेकिन सच यह है कि बीहड़ में कई प्रजातियों पर संकट बना हुआ है। प्रजातियों ऐसी है जो अब नजऱ नहीं आ रही हैं।
सर्वे में सामने आई सच्चाई

सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर के एक सर्वे में यह बात साफ हुई हैं कि बीहड़ में नौ तरह के वन्यजीव ऐसे हैं जो 1980 के बाद नजर नहीं आए हैं, इनमें सफेद गिद्द, तेंदुआ, बारह सिन्हा, चीतल, काल हिरन, पाक्स लंबी पूछ वाला, बिल्ली की शक्ल का जीव केरकिलर, प्लेंगुईन प्रमुख हैं। कभी बीहड़ में बड़ीं संख्या में पाए जाने वाले यह जीव अब विलुप्त हो चुके हंै। यही नहीं पांच तरह के वन्यजीव ऐसे हैं जिनके ऊपर खतरा मंडराया हुआ है। संस्था के सर्वे में यह साफ हुआ है कि सांभर, लकड़बग्घा, लोमड़ी, लाल हिरन और काला नेवला अब बहुत कम संख्या में ही नजर आते हैं।
भारी पड़ रहा है सरकार का निर्णय

सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के जैव विविधता कार्यक्रम के विशेषज्ञ डाक्टर राजीव चौहान का कहना है कि बीहड़ में विलायती बबूल बोने का सरकारी निर्णय बीहड़ के वन्यजीव पर भारी पड़ा है। विलायती बबूल के नुकीले कांटों ने गद्दीदार पैरों वाले जीव को समाप्त कर दिया। यह जीव या तो बीहड़ से पलायन कर गए या फिर मर गए। उनका कहना है कि वन्यजीव की रक्षा के लिए उनके प्राकृतिक आवासों से छेड़छाड़ करने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना जरूरी है। गौरतलब है कि 1980 के दशक में चम्बल में आयकट योजना के तहत बीहड़ में विदेशी बबूलों के बीजों का बड़ी संख्या में छिड़काव किया गया था। प्रमुख वन संरक्षक उत्तर प्रदेश डॉक्टर रूपक डे भी मानते हैं कि पंचनद में वन्यजीव के लिए विलायती बबूल बड़ी समस्या बन।
नहीं नजर आए
-1980 के बाद से नजर नहीं आए तेंदुआ, चीतल, बारहसिंगा, काला हिरन
इन पर संकट
-इन पर है संकट सांभर, लकड़बग्घा, लोमड़ी, लाल हिरन, काला नेवला
-विलुप्त हो चुके वन्य जीवों सफेद गिद्द, तेंदुए, बारहसिंगा, चीतल, कला हिरन, पॉक्स केरकिल, प्लेगुइन
यह हैं कारण
-अत्यधिक मात्रा में बीहड़ का समतलीकरण।
-विलायती बबूल के कारण कांटो की समस्या।
-बीहड़ में वनों का व्यापक स्तर पर कटान होना।
-मांस के लिए वन्यजीव का अत्यधिक शिकार।
-गर्मियों में लगातार बढ़ रहा तापमान।
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