जल संकट से यूपी के इस इलाके में मचा हाहाकार, वीडियो में देखें ग्रामीणों का दर्द
सूखे कुओं तालाबो में उड़ती धूल में पशु पक्षी पानी की तलाश में रहे भटक...

औरैया. रहिमन पानी रखिए बिन पानी सब सून ... कविबर रहीम की पंक्तियां बीहड़ी जन जीवन पर आजकल सटीक बैठ रही हैं। जहां पानी को लेकर आम जिंदगियों के साथ साथ पशु पक्षियों में कोहराम मच गया है। जीवन के अस्तित्व को लेकर सरकारी उपेक्षा संसाधनों की कमी पर और भारी पड़ती नजर आ रही है।
डिजिटल इंडिया के नारे के साथ देश की तरक्की के सपनों में खोयी सरकार के प्रयासों का असली सच बीहड़ की सरजमी पर सरकार के गाल पर करारा तमाचा साबित हो रहा है। बुनियादी जरूरतों को छोड़ कर जिन्दा रहने के लिए पानी की आवश्यकता दूर की कोड़ी बन कर रह गयी है। आलम यह है कि प्रति वर्ष यहां सूखे से बदतर हालातों से भी प्रशासन सबक नही लेना चाहता है। जहां गर्मियों के मौसम में जीव जंतुओं पशु पक्षियों के पानी के आभाव में मरना आम बात सी हो चली है।
बीहड़ के कुआं गांव में बीते दिनों आधा दर्जन सियारों और कछुओं की लगातार मौत होना सम्बंधित जिम्मेदारों की हकीकत को बयां करने के लिए काफी है। यही हाल सेगनपुर इलाके का है, जंहा पालतू जानवरों को पानी के संकट से गुजरना पड़ रहा है।
ग्रामीण बोले
ग्रामीण अखिलेश यादव का कहना है कि तालाबों में पानी न होने से पालतू जानवरों को तो पशुपालक दूसरे साधनों से प्यास बुझा रहे हैं मगर वन्य जीवों और पक्षियों की पानी के अभाव में लगातार मौतें हो रही हैं। कुआं गांव के राघवेंद्र गुर्जर बताते हैं कि गांव में लगे हैण्डपम्प भू गर्भ स्तर नीचे जाने से महज शो पीस बनकर रह गए हैं। इंसानों तक को पानी की किल्लत से जूझना पड़ रहा है तो पशु पक्षियों को कहां से पानी पिलाया जाए। राजपाल सिंह कहते हैं कि पहले कई वर्षों से वन विभाग जीवों के लिए जंगल में पानी से भरवा कर घड़े रखवाता आया है, मगर इस वर्ष विभाग की खामोशी जीव जंतुओं के लिए काल का गाल बन गयी है। कृपाल सिंह ने बताया कि पानी की समस्या ने यंहा पशुपालन की अपार सम्भावनाओं पर ग्रहण लगा दिया है। किसान लालू पहलवान बताते हैं कि जल्द ही पानी के संकट को दूर न किया गया तो अभी वन्य जीवों के साथ पालतू जानवरों का मरणा तय है।
हर वर्ष आता है पानी का संकट
आपको बता दूं कि जनपद के दक्षिणी छोर पर स्थित बीहड़ में हर वर्ष पानी का संकट खड़ा होता है, मगर प्रशासन हमेशा डार्क जोन क्षेत्र घोषित कर दायित्वों से किनारा कर लेता है और फिर होती है आंकड़ों की बाजीगरी का खेल, जिसमें पानी तो नसीब नहीं होता, मगर जिम्मेदारों का गला जरूर तर हो जाता है। जहां तालाब पोखरों सहित कुओं की मरम्मत और पानी भरवाने के नाम पर लाखों का वारा न्यारा यहां की नियति बन गया है।
देखें वीडियो...
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