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श्रमिकों के स्वास्थ्य पर मंडराता खतरा

locationऔरैयाPublished: Aug 07, 2016 09:43:00 am

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vivek

मार्बल का कार्य करने वाले ये मजदूर अधिकतर समय बिना मॉस्क व ग्लब्स् के ही कार्य करते हैं। फैक्ट्री के आगे से गुजरने पर कई मजदूर सिर से पांव तक पाऊडर से लथपथ दिखाई देते हैं। इससे टीबी व सिलिकोसिस जैसी बीमारियां होने का खतरा मंडराता रहता हैं।

Faced with the health of workers at risk

Faced with the health of workers at risk

रीको क्षेत्र में गत कुछ वर्षों में स्थापित विभिन्न मार्बल फैक्ट्रियों से क्षेत्र के औद्योगिक विकास के साथ-साथ युवाओं के लिए रोजगार में भी बढ़ोत्तरी हुई है, लेकिन पाऊडर फैक्ट्रियों, मार्बल चिराई व घिसाई समेत मूर्तियां बनाने की इकाई में कार्यरत श्रमिकों के स्वास्थ्य पर खतरा भी मंडरा रहा है। मार्बल का कार्य करने वाले ये मजदूर अधिकतर समय बिना मॉस्क व ग्लब्स् के ही कार्य करते हैं। फैक्ट्री के आगे से गुजरने पर कई मजदूर सिर से पांव तक पाऊडर से लथपथ दिखाई देते हैं। इससे टीबी व सिलिकोसिस जैसी बीमारियां होने का खतरा मंडराता रहता है, इसके बावजूद न तो फैक्ट्री मालिक और ना ही प्रशासन इन मजदूरों के स्वास्थ्य के प्रति चिंता जता रही है।
दर्जनों मजदूरों पर मंडराता खतरा
रीको इंण्डस्ट्रियल एरिया व ग्रोथ सेंटर में स्थापित कई मार्बल फैक्ट्रियों में कार्यरत मजदूरों के के स्वास्थ्य पर खतरा मंडरा रहा है। मार्बल की घिसाई या कटाई तथा चूना पाऊडर पैकिंग के दौरान उडऩे वाले पाऊडर के महिन कण शरीर में प्रवेश करने से श्रमिकों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव तो पड़ता ही है, विभिन्न बीमारियां होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। मार्बल वेस्ट (स्लरी) सड़क किनारे डालने से हवा के साथ आसपास के पौधों के सम्पर्क में आने पौधे जलने लगते हैं। जब पौधों का यह हाल हो रहा है तो श्रमिकों के शरीर पर पडऩे वाले प्रभाव की कल्पना ही की जा सकती है।
कपड़ा लपेट लेता है तो कोई पॉलीथिन सिर पर बांध देता है
मूर्तियां आदि बनाने के कई कारखानों व फैक्ट्रियों में कार्यरत श्रमिकों को दुर्घटना से बचाव के लिए तो उपकरण दिए जाते हैं, लेकिन पाऊडर से बचाव के लिए मास्क, ग्लब्स व जूते आदि मुहैया नहीं करवाएं जाते हैं। ऐसे में कई मजदूर अपने मुंह व नाक आदि को ढकने के लिए कपड़ा लपेट लेते हैं तो कुछ सिर पर पॉलीथिन बैग आदि बांध लेते हैं। साथ ही कई मजदूर बिना जूतों व ग्लब्स के ही कार्य करते हैं। इससे हाथों व पैरों की त्वचा को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है। श्रम कानून के अनुसार कर्मचारियों व मजदूरों की सुरक्षा का दायित्व संस्था प्रबंधन का होता है।
प्रशासन भी नहीं दे रही ध्यान
फैक्ट्री के आसपास उडऩे वाली स्लरी से होने वाली बीमारियों के डर से आसपास के आदिवासी मजदूरों में इस कार्य को लेकर रूझान कम होता जा रहा है। सरकार व स्वास्थ्य विभाग भी इन मजदूरों के स्वास्थ्य के प्रति गंभीर नहीं है। यहीं कारण है कि श्रमिकों को अब तक सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराए जा रहे हैं और ना ही मजदूरों के स्वास्थ्य की इन इकाइयों में जांच करवाई जाती है। प्रशासनिक अनदेखी का नतीजा श्रमिकों को भुगतना पड़ रहा है।
इन्होंने बताया …
फैक्ट्री प्रबंधन की ओर से ग्लब्स व मॉस्क आदि नहीं दिया जाता है। काम करते समय पाऊडर शरीर में जाने से परेशानी तो होती ही है, पर काम करना भी जरूरी है।
– चंदू गरासिया, श्रमिक।
मॉस्क आदि तो नहीं दिया जाता है। कभी-कभार मुंह पर कपड़ा लपेट लेते हैं। आदिवासी क्षेत्र से आने वाले अन्य मजदूरों में से कुछ बीमार होते है तो काम छोड़ देते हैं।
– निम्बाराम गरासिया, श्रमिक।
– बिना मॉस्क के काम करने व पाऊडर के शरीर में जाने से समय के साथ फैफड़े कमजोर होते रहते हैं। लम्बे समय तक रहने से टीबी होने का खतरा तो रहता ही है। मजदूरों के कटिंग करते समय पानी का छिड़काव करना चाहिए व मास्क लगाकर कार्य करना चाहिए।
– एमएल हिण्डोनिया, चिकित्सालय प्रभारी, आबूरोड।

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