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दरअसल हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट के वकील बिजेंद्र प्रताप कुमार ने एक RTI में ये सवाल किया था कि क्या पेड़, झाड़ी, खंबे या फिर किसी दीवार के पीछे छिप कर चालान काटना सही है? उन्होंने यह भी पूछा कि ट्रैफिक पुलिस की यह रणनीति कहीं कोई नियम या आदेश का हिस्सा तो नहीं है?
बिजेंद्र की RTI में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए तत्कालीन ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर (ट्रैफिक) संदीप गोयल ने बताया है कि “ऐसी जानकारी मिली है कि जिस भी हवलदार या ट्रैफिक जोनल ऑफिसर को रेडलाइट पर तैनात किया जाता है, वह अपने आप को सड़क के किनारे किसी पेड़ या दूसरी चीजों के पीछे छुपा लेता है। ऐसा करने के पीछे उनका मकसद होता है कि वो नियम तोड़ने वाले लोगों को अचानक से पकड़ सकें। ट्रैफिक नियम तोड़ने वालो को पकड़ने के लिए अपनाए जाने वाले इस तरीके को एम्बुश प्रॉसिक्यूशन कहते है।
आगे उन्होंने ये भी कहा कि इस तरीके को तुरंत खत्म कर दिया गया है। संदीप गोयल ने बताया कि अब से सभी ट्रैफिक इंस्पेक्टर, जोन ऑफिसर और हवलदार को सड़क के सामने खड़ा होना होगा। ऐसे में लोग खुद ब खुद लालबत्ती या सिग्नल पर रुकेंगे। जो भी लोग ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करते हैं उन्हें सड़क पर ही रोका जाएगा या उनके वाहन का नंबर नोट करके उन्हें नोटिस भेजा जाएगा।
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आज भी कई जगहों पर प्रॉसिक्यूशन के जरिए ट्रैफिक पुलिस नियम तोड़ने वालों को पकड़ती है। हालांकि ऐसा करना पूरी तरह से गलत है। ये तरीका बदमाशों और आतंकवादियों को पकड़ने के लिए बनाया गया है ऐसे में आम आदमी के खिलाफ इसका इस्तेमाल करना पूरी तरह से गलत है। को बदमाशों या आतंकवादियों को पकड़ने के लिए किया जाता है। ऐसे में इसका इस्तेमाल आम आदमी के खिलाफ करना गलता है। दरअसल ट्रैफिक पुलिस का काम नियम टूटने से रोकना होता है ना कि नियम टूटते हुए देखना है। ऐसे में ट्रैफिक पुलिस को सड़क पर खड़े रहने का नियम है जिससे लोग ट्रैफिक नियमों को ना तोड़ें।