बताया जाता है कि 16 साल की उम्र में सूरीरत्ना को सपना आया था कि समुद्र पार करने के बाद उन्हें पति मिलेगा। उन्होंने इस सपने के बारे में अपने माता-पिता को बताया। फिर अपने भाई के साथ पति की खोज में निकल गईं। कुछ मान्यताएं ये भी हैं कि ये सपना उनके पिता को आया था। जिसके बाद उन्होंने अपनी बेटी और बेटे के समुद्र से बताई गई दिशा में जाने की व्यवस्था की। नाव से समुद्र पार करने के बाद सूरीरत्ना कोरिया पहुंची। उपलब्ध जानकारी के अनुसार सुरीरत्ना दक्षिण कोरिया के किमहये राजवंश ‘ग्योंगासांग प्रांत’ के राजा सुरों से मिलीं। उन्हें अपने सपने के बारे में बताया और दोनों की शादी हो गई।
ये भी बताया जाता है कि शादी होने के बाद वह अयोध्या से अपने साथ एक पत्थर भी लेकर गईं थीं। जिसे उनके निधन के बाद उनकी कब्र पर लगा दिया गया है। ये कहानी काल्पनिक तो लग सकती है लेकिन कई पुरातत्व अधिकारियों ने ऐसे सबूत दिए जिसे जाहिर हो गया कि अयोध्या और कोरिया की सभ्यताओं में काफी साम्य है। अयोध्या की कई परंपराएं कोरिया में मनाई जाती हैं। कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति किम डेइ जंग एवं पूर्व प्रधानमंत्री हियो जियोंग एवं जोंग पिल किम इसी राजवंश से आते थे। दक्षिण कोरिया में स्वयं को इस गोत्र को मानने वाले तकरीबन 60 लाख कोरियाई लोग है, जो वर्तमान जनसंख्या का लगभग 10 प्रतिशत है। इस कारण अयोध्या और भारत से इनका खासा लगाव है। वैसे तो वहां की सभी रानियों को सम्मान दिया जाता है किन्तु रानी हौ ह्वांग को वहां सबसे अधिक माना जाता है।
यूपी सरकार ने सूरीरत्ना का मंदिर बनाने का प्रस्ताव पास
पुरातत्विदों ने कुछ ऐसे पत्थर खोजे हैं, जिन पर दो मछलियां बनी हुई हैं। ये पत्थर साबित करते हैं कि कोरिया और अयोध्या के बीच सांस्कृतिक धरोहरों का संबंध था। कोरिया के गिमहे शहर की राजशाही कब्रों के डीएनए नमूनों से भी भारतीय और कोरियाई सभ्यताओं के संबंध को प्रमाणित किया जाता रहा है। यूपी सरकार ने दो साल पहले अयोध्या में इस राजकुमारी का मंदिर बनाने का प्रस्ताव पास किया था।
हर साल अयोध्या आते हैं कारक वंश के लोग
अयोध्या में महारानी हौ ह्वांग का एक स्मारक भी है। संत तुलसीघाट के पास ये स्मारक एक छोटे पार्क में बनाया गया है। अयोध्या के पूर्व राजपरिवार के सदस्य बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र यहां आने वाले कारक वंश के लोगों की मेहमान नवाज़ी करते रहे हैं। पिछले कुछ सालों में वो भी कई बार दक्षिण कोरिया जा चुके हैं। बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र 1999-2000 के दौरान कोरिया सरकार के मेहमान रह चुके हैं। दस्तावेज बताते हैं कि राजकुमारी सूरीरत्ना को गया की पहली महारानी का सम्मान भी मिला था। राजकुमारी की कब्र गिमहे शहर में है। इस पर लगा पत्थर वही है जो राजकुमारी अयोध्या से लेकर गईं थीं। कारक वंश के लोगों का एक समूह हर साल फ़रवरी मार्च के दौरान इस राजकुमारी की मातृभूमि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने अयोध्या आता है। कोरियाई दस्तावेजों के अनुसार 57 वर्ष की आयु में महारानी का देहांत हो गया था।