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कहीं यह सियासत तो नहीं? 28 साल बाद याद आया गोली कांड, 35 साल बाद फिर खुलेगी दंगों की फाइल

locationअयोध्याPublished: Feb 06, 2019 05:39:43 pm

Submitted by:

Abhishek Gupta

लोकसभा चुनाव से पहले ही उप्र की राजनीति दिलचस्प मोड़ पर है। एक ओर पुराने घोटालों की फाइलें खुल रही हैं तो दूसरी ओर पुराने जख्म कुरेदे जा जा रहे हैं।

CM yogi

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पत्रिका इन्डेप्थ स्टोरी.

अयोध्या/कानपुर. लोकसभा चुनाव से पहले ही उप्र की राजनीति दिलचस्प मोड़ पर है। एक ओर पुराने घोटालों की फाइलें खुल रही हैं तो दूसरी ओर पुराने जख्म कुरेदे जा जा रहे हैं। सूबे की राजनीति में अहम रोल अदा करने वाले 1990 के अयोध्या के गोली कांड को 28 साल बाद एक बार याद किया जा रहा है, तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 38 साल पहले 1984 में हुए कानपुर के सिख दंगों की फाइल फिर से खोल दी है। सियासतदां का कहना है कि दफन हो चुके इन मुद्दों को चुनाव के मद्देनजर फिर से जिंदा किया जा रहा है। हालांकि, सरकार का कहना है कि जांच का राजनीति से कोई लेना देना नहीं है।
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क्या हुआ था 1990 में-
अयोध्या में 2 नवंबर 1990 को गोली कांड हुआ था। तब से 28 साल बीत चुका है। उस समय अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराने की कोशिश करने पहुंचे कारसेवकों को रोकने के लिए तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार ने गोलियां चलवाईं थीं। इसमें कई लोग मरे थे। तब मरने वालों की संख्या को लेकर विवाद हुआ था। हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने 27 दिसंबर 1990 को संसद के पटल पर एक रिपोर्ट रखी थी जिसमें 15 लोगों के मरने की बात कही गयी थी। इसके बाद 20 फरवरी 1991 को विश्व हिंदू परिषद ने एक सूची जारी की थी, जिसमें कारसेवक शहीदों की संख्या 59 बतायी गयी थी। लेकिन इधर, एक हफ्ते से इस मुद्दे को फिर से गरमाया जा रहा है। मृतकों की संख्या को काफी बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। एक निजी चैनल द्वारा तत्कालीन राम जन्मभूमि के थानाध्यक्ष के किए गए स्टिंग आपरेशन को वायरल किया जा रहा है। इससे सियासत में एक नई बहस छिड़ गई है। इस पूरे घटनाक्रम को फिर से जिंदा करने के मकसद पर जब पत्रिका टीम ने अयोध्या के लोगों से बात की तो यह बात सामने आयी कि विहिप किसी न किसी बहाने राममंदिर के मुद्दे को जिंदा रखना चाहती है। यह सब इसी का परिणाम है।
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Ayodhya case
क्या कहते हैं स्थानीय निवासी-
अयोध्या के बाबू बाज़ार के शिव मोहन गुप्ता कहते हैं कि राम और राम मंदिर हमेशा से राजनीतिक मुद्दा रहे हैं। 1990 के दर्दनाक इतिहास को इसीलिए राजनीतिक पार्टियां फिर से उकेर रही हैं। स्थानीय निवासी रामनाथ गुप्ता कहते हैं कि 1990 की घटना को दोबारा याद दिलाकर क्या मिलेगा। सिर्फ नई राजनीति गढ़ी जा रही है। इसका मकसद नफरत फैलाना है। नागा राम लखन दास कहते हैं कि 1990 की घटना पर आज भारतीय जनता पार्टी के नेता राजनीति कर रहे हैं। लेकिन, देश की जनता जान चुकी है कि भाजपा सिर्फ राम के नाम पर वोट मांगने का काम कर रही है।
कानपुर में मारे गए थे 127 लोग-
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 1984 में हुई हत्या के बाद दिल्ली और देश के तमाम हिस्सों में दंगे हुए थे। कानपुर मेंं सिखों के खिलाफ सबसे भयावह दंगे हुए जिसमें 127 लोग मारे गए थे। इस दंगे के 35 साल बाद योगी सरकार ने पूरे मामले की जांच के लिए पूर्व डीजीपी अतुल की अध्यक्षता में चार सदस्यों वाली एसआईटी गठित की है। यह टीम छह माह में जांच पूरी कर सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी। लेकिन माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सिखों को साधने के लिए योगी सरकार ने दांव चला है।
Sikh riots
उस वक्त सिख दंगे की जांच करने वाले रंगनाथ मिश्रा आयोग ने दंगों में 127 सिखों की मौत के मामले को दर्ज किया था। सिखों का कहना है कि एक नवंबर को कानपुर में सिखों का कत्लेआम किया गया था, लेकिन इस मामले में बहुत दिनों तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई। हालांकि बाद में जब एफआईआर दर्ज की गई तो स्टेटस रिपोर्ट में कोई पुख्ता सबूत न होने की बात कहकर केस खत्म कर दिया गया था। सिखों ने आरोप लगाया था कि दंगे में सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी, लेकिन महज 127 लोगों की हत्या की एफआईआर दर्ज किए गए।
मनजीत की याचिका पर जांच टीम
राजनीतिक आरोपों के बीच उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने मनजीत सिंह की याचिका पर कानपुर के बजरिया और नजीबाबाद इलाकों में सिख दंगों के दौरान दर्ज हुए मामलों की जांच के लिए एसआईटी के गठन के निर्देश दिए थे। इसी पर यूपी सरकार ने एसआईटी गठन का फैसला किया है। एसआईटी 84 दंगे के उन मुकदमों की दोबारा विवेचना करेगी, जिनमें साक्ष्यों के अभाव के चलते अंतिम रिपोर्ट लगा दी गई थी। अब नई गठित टीम इन केसों को दोबारा से खोलेगी। इसके अलावा एसआईटी को जरूरत हुई तो सीआरपीसी 173 (8) के तहत अग्रिम विवेचना की जाएगी। ऐसे मामले जिनमें जरूरत के बावजूद रिट या अपील नहीं की गई, एसआईटी उन्हें कोर्ट के सामने पेश करने की सिफारिश कर सकती है।

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