scriptअयोध्या में एक दरगाह के रूप में बनी हैं गाय की मजार, जिसकी दुनिया में होती है खूब चर्चा | Cow's majar is built as a dargah in Ayodhya | Patrika News

अयोध्या में एक दरगाह के रूप में बनी हैं गाय की मजार, जिसकी दुनिया में होती है खूब चर्चा

locationअयोध्याPublished: Feb 14, 2020 08:46:03 pm

Submitted by:

Neeraj Patel

दरगाह में गाय की कब्र बनाने की वजह मख्दूम साहब का गोवंश से प्रेम है।

अयोध्या में एक दरगाह के रूप में बनी हैं गाय की मजार, जिसकी दुनिया में होती है खूब चर्चा

अयोध्या. जिले में छह सौ वर्षों से सांप्रदायिक सद्भाव की अलख जगा रही मख्दूम साहब की दरगाह में यूं तो कुल 69 मजारें हैं, लेकिन गाय की कब्र मख्दूम साहब की मजार के सामने है। इसके पास लाल रंग का पत्थर लगाया गया है, जिससे गाय की कब्र की पहचान की जा सके। दरगाह में गाय की कब्र बनाने की वजह मख्दूम साहब का गोवंश से प्रेम है। वह गाय पालते थे। इन्हीं में एक गाय से उनको बहुत प्रेम था। जब गाय की मृत्यु हो गई तो मख्दूम साहब को बहुत दुख हुआ। गाय की मौत के बाद भी उसे अपने से दूर नहीं जाने दिया, बल्कि अपने आस्ताने में ही उसको दफन कराया। उसकी कब्र बनवाई, जो अब भी मौजूद है। गाय की यह कब्र कौमी एकता की नजीर पेश करती है।

यह अलख करीब 600 वर्ष पूर्व ही सूफी संत मख्दूम साहब ने यहां जगाई थी। मख्दूम साहब की राम व रहीम में बराबर श्रद्धा थी। सरयू से उनका अगाध प्रेम था। अपनी तपस्या के लिए सरयू नदी को ही चुना। मख्दूम साहब ने प्रभु राम की नगरी अयोध्या में मोक्षदायिनी सरयू नदी में एक पैर पर खड़े होकर 40 दिन तक तपस्या की थी। दरगाह के सज्जादानशीन नैयर मियां बताते हैं कि जिस घाट पर उन्होंने तपस्या की थी, वह घाट काफी दिनों तक मख्दूम घाट के नाम से जाना गया। नैयर मियां बताते हैं कि सूफियों ने हर व्यक्ति की भावनाओं का सम्मान करते हुए इंसानियत की सेवा की और मोहब्बत का पैगाम दिया।

सछ्वाव को मजबूत करती है बसंत मनाने की परंपरा

मख्दूम साहब की दरगाह सर्वधर्म समभाव व सद्भाव का संदेश देती हैं। दरगाह से जुड़े शाह हयात मसूद गजाली कहते हैं कि मख्दूम साहब ने हमेशा सबका सम्मान किया। दरगाह में हर वर्ग संप्रदाय के लोग आते हैं और मख्दूम साहब की जियारत करते हैं। खानकाह के अंदर बसंत मनाने की परंपरा सछ्वाव को मजबूत करती है।

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