scriptचार द्वार से होते हैं प्रभु राम के दर्शन, मुरारी बापू ने बताए नाम | deities will sit in all four directions of Ram temple | Patrika News

चार द्वार से होते हैं प्रभु राम के दर्शन, मुरारी बापू ने बताए नाम

locationअयोध्याPublished: Nov 29, 2021 11:11:37 pm

Submitted by:

Satya Prakash

भगवान श्री राम की वनगमन मार्ग पर राम कथा के आयोजन में पहले पड़ाव पर तमसा नदी पहुंचे जहां अनुयायियों ने किया मुरारी बापू का किया स्वागत, बापू ने कथा में बताया राम का अस्तित्व

राम मंदिर के चारों दिशाओं में विराजेंगे देवी देवता, परकोटे के चारों कोने में बनेगा मंदिर

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अयोध्या. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के वनगमन मार्ग रामकथा के लिए पहला पड़ाव तमसा नदी के किनारे लिया। इस दौरान बड़ी संख्या में पहुंचे अनुयायियों ने स्वागत किया। और तीन घण्टे लगातार राम कथा प्रवचन के बाद अगले पड़ाव के लिए रवाना हुए।
तमसा नदी के किनारे कथा कहते हुए कहा कि प्रसिद्ध तमसा तट पर ही भगवान राम ने वनगमन करते हुए प्रथम दिवस विश्राम किया था । परमात्मा दर्शन हेतु सबसे सहज साधन प्रसन्नचित्त रहना है। कहा कि आदिगुरु भगवान शंकराचार्य ने अपने सूत्र में कहा है कि प्रसन्नचित्त दशा परमात्मा के दर्शन का द्वार है । भगवान के दर्शन का चार अन्य द्वार बताते हुए नाम , रूप , लीला और धाम का वर्णन किया । प्रथम द्वार नाम की व्याख्या में ‘ बंदउँ नाम राम रघुवर को और ‘ कहौ कहां लगि नाम बड़ाई , राम न सकहिं नाम गुन गाई । ‘ दूसरे द्वार रूप ‘ भय प्रगट कृपाल दीनदयाला गाते हुए कहा कि परमात्मा के दर्शन में द्वार और दीवार बाधक नही हैं मात्र हमारी ओर से देरी ही एकमात्र बाधा है । तीसरा द्वार लीला में कीजै शिशु लीला अति प्रिय शीला और चौथा द्वार धाम को व्याख्यायित करते हुए कलह से मुक्त काया को अयोध्या बताते हैं । जहाँ युद्ध नही, संघर्ष नही, कलह नही वह काया अयोध्या धाम है। रामनाम परम मंत्र है , महामंत्र है , मंत्रराज है इसमें जो रकार है वह ईश्वर परक है, जो मकार है वह जीव परक है और जो बीच का अकार है वह सेतुपरक है जो जीव और ईश्वर के मिलन का सेतु बनता है।
और मानस के हर कांड के विशिष्ट रस का बखान करते हुए बताते हैं कि बालकांड में हाष्य-विनोद रस है , अयोध्याकांड में करुण रस की प्रधानता है , अरण्यकांड में भयानक रस , किष्किन्धाकांड में वीर रस , सुंदरकांड में शांत रस, लंकाकांड में वीर और वीभत्स रस और उत्तरकांड में अद्भुत रस की प्रधानता है । रामकथा को प्रेमयज्ञ कहकर ‘रामहिं केवल प्रेम पियारा और मानस को अखिल ब्रह्मांड हाइवे बताकर अपनी बात ‘सकल लोक जग पावनि गंगा’ गोस्वामी जी की पंक्तियों से पुष्ट करते हैं । आज इस तीसरे दिवस तमसा तट पर भगवान के जन्म से बालकांड की समाप्ति पर्यंत और अयोध्याकांड में वनगमन और तमसा तट पर भगवान के प्रथम दिवस विश्राम तक कथा सुनाई ।
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