अयोध्या में झूलनोत्सव की प्राचीन परंपरा अयोध्या में झूलनोत्सव की परम्परा आदिकाल से परंपरागत रूप से मनाया जाता है। विश्व विख्यात सावन झूला महोत्सव श्रावण मास शुक्ल पक्ष तृतीय को मणि पर्वत से प्रारंभ होता हैं। पुराणों में वर्णित है कि जब मां सीता व भगवान श्री राम का विवाह उपरांत अयोध्या पहुंचे थे तो राजा जनक ने अपनी पुत्री को उपहार स्वरूप बड़ी संख्या में मनी को भी साथ भेजा था इन मणियों की संख्या इतनी थी कि राजमहल में नहीं रखा जाए सका है। तो राजा दशरथ ने इन सभी मणियों को अयोध्या के दक्षिण क्षेत्र स्थित विद्या कुंड के पास रखवा दिया मणियों की संख्या अधिक होने के कारण या एक पर्वत जैसा बन गया तभी से इस स्थान का नाम मणि पर्वत पड़ा।
माता जानकी ने जहां मनाई थी पंचमी इस स्थान पर लगने वाली झूलोंत्सव उस समय से शुरू हुआ जब माता सीता श्रावण मास में अपने मायके जनकपुरी न जाकर मणियों से बनी पर्वत को ही अपना मायका मानकर पंचमी मनाई और उस स्थान पर भगवान श्री राम के साथ जाकर झूला झूलती थी। तभी से इस स्थान को लेकर झूलनोत्सव परंपरा चलती आ रही है आज भी भगवान श्रीराम व माता जानकी के स्वरूपों को इस स्थान पर लाकर झूला झूल आते हैं जिसके साथ अयोध्या का झूला उत्सव की शुरुआत हो जाती है और अयोध्या के मंदिरों में भगवान को झूले पर बैठाया जाता है।
मणि पर्वत पर सजा झुलन झाँकी हरियाली तीज के मौके पर अयोध्या के प्राचीन मणि पर्वत स्थल पर आज भी ऐतिहासिक भगवान श्री राम माता जानकी व लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न के स्थापित मंदिर में भव्य झांकी का आयोजन किया गया है। जिसकी पूजा अर्चना प्राचीन परंपरा के अनुसार से किया जाता है इस ऐतिहासिक क्षण का दर्शन के लिए आज भी देश विदेश से पर्यटक व श्रद्धालु अयोध्या पहुंच रहे हैं। और झूलनोत्सव में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु व पर्यटक मणि पर्वत पर पहुंच कर अद्भुत दर्शन प्राप्त कर रहे हैं।