भगवान श्री राम ने भी अयोध्या के इस स्थान पर किया था पिंडदान पौराणिक मान्यता के अनुसार अयोध्या में सरयू तट के किनारे पित्रो को जल से तर्पण तथा घाटों के किनारे ब्राह्मणों का भोजन कराकर श्राद्ध करने से पूर्वजो की आत्मा को शान्ति तथा परिवार को अधिक लाभ होता है . आचार्य हरिदयाल शास्त्री ने बताया कि दिवंगात पिता माता की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है अयोध्या में दो प्रमुख ऐसे स्थान भरतकुंड व सहस्त्रधारा लक्ष्मण घाट हैं . इस स्थान पर पिण्ड दान करने से पूर्वजो को शान्ति मिलती है . इस घाट पर पिण्ड दान करने से अपने पूर्वज को प्रेतयोनि से मुक्त कर होकर पृत्रयोनि में जाते हैं जो कि हमारे परिवार की रक्षा भी करते हैं. हरिदयाल शास्त्री ने बताया कि शादी विवाह में भी नंदी श्राद्ध पहले होती है श्रद्धा से श्राद शब्द जुड़ा है इसलिए जो श्रद्धा से तर्पण पिंडदान करते हैं उनके पूर्वजों की आत्मा को शान्ति मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है . सहस्त्रधारा लक्ष्मण घाट के पास ही भगवान लक्ष्मण ने अपना प्राण त्यागा था जब भगवान श्री राम को मालूम हुआ कि लक्ष्मण ने अपने प्राण त्याग दिया तो भगवान् श्री राम वहां पर गए और वहां पर गुरु वशिष्ठ ने ही कहा कि अब इनका शरीर तो नहीं है लेकिन अब उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंड दान करिए साथ ही उन्होंने यह भी कहा की आज से जो भी व्यक्ति इस स्थान पर पिंडदान करेगा उसके पूर्वजों की आत्मा की शांति मिलेगी और वह सीधे स्वर्ग में प्रस्थान करेंगे ।