अयोध्या

एक हाथ से सलाम, दूसरे से राम-राम,यही है अयोध्या की पहचान

-मुसलमानों के हाथों की बनी फूल माला से होती है पूजा-अर्चना-कटरा मोहल्ले में दो दर्जन से अधिक मुस्लिम परिवार बनाते हैं खड़ांऊ-जान मोहम्मद बोले-माला बनाते समय यह नहीं सोचते मजार पर चढ़ेगी या भगवान की मूर्ति परबाबरी के पक्षकार इकबाल ने कहा- मंदिर मस्जिद को लेकर कभी नही रहा तनाव -फैसला पक्ष में आया तो घेर कर छोड़ देंगे जमीन-हाजी महबूब

अयोध्याOct 19, 2019 / 05:56 pm

Satya Prakash

एक हाथ से सलाम, दूसरे से राम-राम,यही है अयोध्या की पहचान

अयोध्या. मंदिर मस्जिद मामले में मध्यस्थता पर भले ही मुस्लिम पक्षकारों में मतभेद खुलकर सामने आ गए हों लेकिन, अयोध्या हमेशा से ही सद्भाव की मिसाल रहा है। तभी बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब कहते हैं कि कोर्ट का फैसला मुस्लिमों के हक में आया तब भी विवादित परिसर में जमीन घेर कर छोड़ देंगे। ताकि मुल्क में अमन-चैन कायम रहे। राम नगरी अयोध्या में रहने वाले हिंदू और मुस्लिम समुदाय हमेशा से अमन-चैन के हिमायती रहे हैं। अब जब फैसले की घड़ी आ गयी तब पूरे देश में बेचैनी है लेकिन अयोध्या में कोई हलचल नहीं। आज भी भगवान राम सहित हनुमान गढ़ी में चढऩे वाले फूल माला की बेडिय़ां मुस्लिम समुदाय ही गूंथ रहा है। साधु-संतों की खड़ाऊं मुसलमानों की दुकान से बिक रही है। सौहार्द कायम है। राह गुजरते एक दूसरे से दुआ-सलाम होते ही एक हाथ से सलाम तो दूसरे से राम-राम होता है। यही अयोध्या की पहचान है।
अयोध्या के दर्जनों मंदिरों के सामने दाढ़ी बढ़ाए मुसलमान प्रसाद, पटरंगा, वस्त्र, कंठी-माला, फूल और खड़ाऊ समेत पूजा की अन्य सामग्री बेचते हैं। वे बचाते हैं भगवान राम की पूजा अर्चना में इस्तेमाल होने वाली सामग्री खरीदते समय हिंदू यह नहीं सोचते कि वह पूजा सामग्री किस दुकान से खरीद रहे हैं। सुसहटी मोहल्ले के जान मोहम्मद का परिवार दो पीढिय़ों से भगवान के लिए फूल-माला बनाने के कारोबार से जुड़ा है। रोज सुबह से इनके घर की महिलाएं खेतों से फूल चुन कर लाती हैं। उसके बाद उनकी माला बनाती हैं। यही माला अयोध्या के प्रमुख मंदिरों-हनुमानगढ़ी,कनक भवन,नागेश्वरनाथ आदि पर चढ़ती है। वे कहते हैं कि जो मालाएं हमारे परिवार में गूंथी जाती हैं नहीं पता होता कि इन्हें मजार पर चढ़ाया जाएगा या फिर यह मंदिरों मेें चढ़ेगी। मुस्लिमों के हाथ से चुने फूल हर रोज भगवान को अर्पित होते हैं। यहां के मुसलमानों की यह रोज की दिनचर्या है। उनकी आमदनी का जरिया है। कई मुसलमानों ने तो कई-कई बीघे में फूल की खेती की है। यह सब के सब फूल तो भगवान को ही चढ़ते हैं। जान मोहम्मद कहते हंै यह झगड़ा खत्म हो जाए तो अयोध्या का और तेजी से विकास होगा। मंदिर-मस्जिद की लड़ाई राजनीति करने वाले लड़ते हैं। हमारा तो सबसे बड़ा धर्म परिवार का पेट पालना है।
पप्पू मियां भी परिवार के साथ शनिवार की दोपहर फूल-माला बनाने में व्यस्त दिखे। परिवार की महिलाएं और बच्चे इस काम में उनका सहयोग करते हैं। पप्पू कहते हैं अयोध्या में बाबरी मस्जिद तो अब शायद ही बन पाए। मंदिर बन जाए तो भी कोई एतराज नहीं। अयोध्या के विकास में ही सब का विकास है। खड़ाऊं बनाने का काम करने वाले कलीम कहते हैं उनके दादा-परदादा भी खड़ाऊ के कारोबार से जुड़े रहे हैं। अब तक हजारों साधु-संतों को वह खड़ाऊ बेच चुके होंगे। पूजा-पाठ में भी यह काम आती है। वे कहते हैं मुझे बहुत अच्छा लगता है जब कोई संत उनकी हाथ की बनाई खड़ाऊं पहन गुजरता है।
बाबरी मस्जिद मामले के मुख्य पक्षकार इकबाल अंसारी की राय भी कुछ इसी तरह की है। इकबाल कहते हैं उनके मरहूम वालिद मुकदमे के पक्षकार थे। वे भले ही कानूनी तौर पर हिंदू पक्ष के विरोध में कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे थे लेकिन कभी भी अयोध्या में किसी साधु-संत या हिंदू से उनकी दूरी कभी नहीं रही। यहां तक कि राम मंदिर के पक्षकार परमहंस दास और मेरे वालिद हाशिम अंसारी एक ही रिक्शे पर बैठकर शहर घूमते थे। इकबाल कहते हैं मैं स्वयं चाहता हूं कि कोर्ट का फैसला दोनों पक्ष माने। ताकि अयोध्या में आपसी प्रेम और भाईचारा कायम रहे। इसके पहले बाबरी मस्जिद मामले के पैरोकार हाजी महबूब ने भी यही कहा था अगर फैसला उनके पक्ष में भी आता है तो वह चाहेंगे कि उस जगह पर कोई मस्जिद न बनाकर दीवार बनाकर छोड़ दी जाए। ताकि मुल्क में आपसी प्रेम और भाईचारा बना रहे।
नवाब शुजाउद्दौला ने बनवाई थी हनुमान गढ़ी
अयोध्या की प्राचीन और ऐतिहासिक हनुमानगढ़ी मंदिर फैजाबाद के नवाब शुजाउद्दौला ने बनवाई थी। जनश्रुति है कि मंदिर के पुजारी बाबा अभयराम ने शहजादे की जान बचाई थी। इससे खुश होकर नवाब ने भव्य गढ़ी का निर्माण करवाया था। तब हिंदू और मुसलमानों दोनों ने मिलकर इसके बनाने में योगदान किया था। एकता की यह मिसाल आज भी कायम है। हनुमानगढ़ी के आसपास आज भी पूजा की दर्जनों दुकानें मुसलमानों की हैं।

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