जिस तरह राम मंदिर को लेकर शिव सैनिकों के बलिदान को भूला नहीं जा सकता। उसी तरह शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की हिंदूवादी छवि किसी की नजरों से नहीं उतर सकती। राम मंदिर के भूमि पूजन की जब तारीख तय की गई तो मेहमानों की लिस्ट भी तैयार की गई थी, लेकिन 28 साल पहले के संघर्ष में शामिल तमाम नेताओं को लिस्ट में शामिल नहीं किया गया।