राम मंदिर निर्माण के लिए 29 वर्षों से पत्थरों के बीच भाइयों की छाया ढूंढ रही बहन ने सरकार से की मांग
अयोध्याPublished: Nov 17, 2019 09:49:51 am
राम मंदिर आंदोलन के दौरान शहीद हुए दो सगे कोठारी भाइयों की बहन पूर्णिमा कोठारी ने राम मंदिर निर्माण में सहयोग की इच्छा प्रकट की
29 वर्षों से पत्थरों के बीच भाइयों की छाया ढूंढ रही बहन ने सरकार से की मांग
अयोध्या : सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या पहुंची पूर्णिमा कोठारी ने रामलला का दर्शन किया जिसके बाद राम मंदिर निर्माण कार्यशाला पहुंची जहां पत्थरों को छूकर मंदिर निर्माण की अनुभूति की। वही उस दौरान पूर्णिमा कोठारी ने अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कहा कि हर वर्ष इन पत्रों में अपने भाइयों की छाया ढूंढने आती हूं और आज एहसास हुआ कि अब हमारे भाइयों का बलिदान सार्थक हुआ।
मंदिर कार्यशाला में पूर्णिमा कोठाई पत्रकारों से बात करते हुए बताया कि आज मेरे भाइयों का बलिदान सार्थक हो गया है। वही बताया कि अगर मुझे पहले से ही पता होता कि आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना है तो मैं पहले से ही अयोध्या पहुंचकर रामलला के दरबार में होती। मैं अयोध्या अपने भाइयों के शहीद होने के बाद से ही प्रत्येक वर्ष राम मंदिर की आज लिए अयोध्या आती रही हूं आज मनोकामना पूर्ण हुई। कार्यशाला में रखे पत्थरों को देख कर अनुभूति होती है कि मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो गया हैं। वह बताया कि राम मंदिर के लिए पिछले 491 वर्षों से राम भक्त अपना बलिदान दिए हैं आज उस संघर्ष को विराम मिला है बहुत अच्छा फैसला सुप्रीम कोर्ट के द्वारा मिला है वहीं सरकार से मांग करते हुए कहा कि इस संघर्ष गाथा में आज तक जितने भी बलिदान हुए राम भक्त हैं उनके स्मृति में एक संग्रहालय में स्मृति स्मारक बने ताकि आने वाली पीढ़ियों में भी याद किये जायें। आज से 29 वर्ष पूर्व जो घटना हुई शायद आज की पीढ़ी उसे नहीं जानती लेकिन आज जब फैसला आया तो इससे जरूर नई पीढ़ी के लोगों को जानने की इच्छा होगी और आज जब भी मंदिर का निर्माण होने के बाद जरूर नई पीढ़ी के लोग भी दर्शन करना पसंद करेंगे तो ऐसे में यदि संग्रहालय बनता है तो नई पीढ़ियों को भी उन बलिदानों की याद दिलाती रहेगी। इसलिए इसके निर्माण को लेकर भी सरकार को सूचना चाहिए वही होने वाली राम मंदिर निर्माण को लेकर इच्छा प्रकट किया कि जिस कार्य के लिए हमारे भाइयों ने अपना बलिदान दिया है यदि वह राम मंदिर निर्माण का कार्य में अपने हाथों से कर सकूं यह मेरा सौभाग्य होगा और मेरी इच्छा भी है।