जब पहली बार देखी दिवाली.. पत्रिका टीम ने अयोध्या के उन निवासियों से बातचीत की जिन्होंने उस दौर की अयोध्या की दिवाली देखी थी जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था और उस दिवाली को भी हर्ष और उल्लास के साथ मनाया था। जिस साल देश आजाद हुआ था। अयोध्या के स्वर्गद्वार क्षेत्र में रहने वाली 80 वर्षीय गौरी देवी ने बताया कि जब उनका जन्म हुआ और उसके बाद जब उन्होंने होश संभाला उस वक्त देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था देश को आजाद कराने के लिए गांधी जी के नेतृत्व में पूरे देश में आंदोलन चल रहा था। ऐसे में भारत में मनाए जाने वाले हर पर्व त्योहार सिर्फ प्रतीकात्मक रुप में मनाए जाते थे, क्योंकि अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मों सितम से हर कोई परेशान था। गुलामी का एहसास हर एक के दिल में था। ऐसे में त्योहार को लेकर मन में उल्लास आना संभव ही नहीं है फिर भी सदियों की जो परंपरा थी उसे हर देशवासी निभा रहा था और उसी तरह से राम नगरी अयोध्या में भी प्रतीकात्मक रूप में दिवाली मनाई जाती रही। साल 1947 में अयोध्या में भी दो बार दिवाली मनाई गई एक बार तब जब 15 अगस्त सन 1947 को देश आजाद हुआ और दूसरी बार अक्टूबर के महीने में जब अयोध्या के लोगों ने अपने जेहन में आजाद होने के ख्याल के साथ खुशियों के दीप जलाए।
बिल्कुल अलग थी पहले की दिवाली नगर पालिका परिषद फैजाबाद में विविध कर अधीक्षक के रूप में सेवानिवृत्त हुए अयोध्या के रायगंज निवासी रमाशंकर शुक्ल का कहना है कि आज की दिवाली और आज से 50 वर्ष पूर्व की दिवाली में जमीन आसमान का फर्क है। उस दौर में देश गरीबी की समस्या से जूझ रहा था। हर आम इंसान मुफ़लिसी के दौर में था फिर भी महंगाई इस कदर नहीं थी। लोगों में ईमानदारी थी और खास तौर पर मिलावट बिल्कुल नहीं थी। बाजार में मिलने वाली मिठाईयां बेहद शुद्ध होती थी उस दौर में बिजली की लाइटें तो नहीं थी लेकिन मिट्टी के दीयों से हम लोग इस तरह अपने घर रोशन करते थे जैसे आज लोग बिजली की झालरों से करते हैं। जिस साल देश आजाद हुआ उस साल एक आजाद देश के नागरिक के तौर पर हर किसी के मन में खुशी और उल्लास था।लेकिन देश के बंटवारे को लेकर उपजे विवाद जगह जगह हो रहे दंगों का दंश कई वर्षों तक लोगों के जीवन पर रहा और रामनगरी अयोध्या इस से अछूती नहीं रही है। कई सदियों से संतों की नगरी कही जाने वाली अयोध्या में दिवाली का पर्व दीपक जलाकर ही मनाया जाता रहा है सन 70 के बाद से दीपावली के पर्व का व्यापक स्वरूप देखने को मिला जब बड़े पैमाने पर बिजली की रंगीन झालरों से लोग घरों को सजाने लगे और जमकर आतिशबाजी होने लगी।
संतों की महत्वपूर्ण भूमिका फैजाबाद सिटी बोर्ड के अध्यक्ष रहे महंत रामचरित्र दास ने बताया कि आजादी के आंदोलन में अयोध्या के संतों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है अपने कथा प्रवचनो में और अपने शिष्यों में शिक्षा के तौर पर संतों ने आजादी के आंदोलन में अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया जिस दौर में देश आजाद हुआ उस समय 15 अगस्त सन 1947 को देश के आजाद होने की घोषणा होते ही अयोध्या के मठ मंदिरों में घंटे घड़ियाल बजाए गए और खुशियां मनाई गई और सन 1947 की दिवाली देश की पहली आजाद भारत की दिवाली थी इसलिए उसका महत्व हमेशा रहेगा।
हुई था विशेष पूजा 90 वर्षीय संत राम भजन दास बताते हैं कि जिस समय 15 अगस्त सन 1947 को देश आजाद हुआ उस दिन अयोध्या में मंदिरों में विशेष रूप से पूजा आराधना का आयोजन हुआ था। संतों की टोली ने घंटे घड़ियाल हाथ में लेकर यात्रा निकाली और आजादी के जश्न को मनाया था। उस वर्ष अयोध्या में 2 महीने के अंदर दो बार दीपावली मनाई गई पहला वक़्त वह था जब सन 1947 में 15 अगस्त की तारीख को देश आजाद हुआ। उस वक्त भी दीपक जलाए गए और खुशियां मनाई गई और उसके बाद अक्टूबर के महीने में परंपरागत रूप से दीपावली के पर्व को हंसी खुशी से मनाया गया। आज के दौर में दिवाली का स्वरूप काफी बदल चुका है और युवा वर्ग इसे आतिशबाजी के पर्व के रुप में मानता है जबकि इस पर्व का आध्यात्म से बेहद गहरा लगाव है।