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याददाश्त के साथ ‘मंगल’ के चेहरे पर लौटी मुस्कान

locationअयोध्याPublished: Jun 20, 2018 05:56:55 pm

– छह महीने से यूपी में भटक रहे पंजाब के बुजुर्ग को पहुंचाया घर, 1100 किमी दूर बाघा बॉर्डर पर परिवार से मिलाया

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याददाश्त के साथ ‘मंगल’ के चेहरे पर लौटी मुस्कान

अयोध्या. तन पर मैला-कुचैला कपड़ा, हाथ में जाड़े के स्वेटर, पानी की एक बोतल, सिर पर नारंगी दस्तार। नाम सरदार मंगल सिंह। सरदार को अपने नाम के अलावा कुछ भी याद नहीं। छह महीने से फैज़ाबाद जिले के बड़ागांव रेलवे स्टेशन और आसपास मंडराते हैरान-परेशान सरदार पर तमाम निगाहें गईं, लेकिन किसी ने सरदार का अतीत जानने की जहमत नहीं उठाई। ईद की रौनक पर सरदार की जिंदगी में नया मंगल हुआ। एक घुमंतू की नजर सरदार से टकराई तो सवाल फुदका कि कित्थे जाणा है। जवाब मिला – आपने पिंड (पंजाबी में गांव को पिंड कहते हैं) पिंड कित्थे हैं? इस सवाल का जवाब नहीं मिला। कारण सरकार को कुछ भी याद नहीं था। अब शुरू हुआ घुमंतू की खोज-बीन का सिलसिला। छानबीन और पड़ताल सटीक दिशा में आगे बढ़ी और ईद के दो रोज बाद अमृतसर के रास्ते पंजाब की अजनाला तहसील और कंडहेर थाने के तेड़ा कलां गांव तक मंगल सिंह के जिंदा होने की मंगलकारी खबर पहुंच गई। अब जिम्मेदारी थी मंगल को उनके घर तक पहुंचाने की। इस जिम्मेदारी को भी खुद निभाया घुमंतू श्रीकांत मिश्र ने। श्रीकांत ने लंबा सफर तय करते हुए मंगल को उनके मुकाम तक पहुंचा दिया।

मेले में गुम हुए मंगल पहुंचे राम की नगरी

कहानी कुछ यूं है। पाकिस्तान की सरहद से लगे गांव तेड़ा कलां के मूल निवासी और पेशे से दिहाड़ी मजदूर सरदार मंगल सिंह दिसंबर 2017 में पटना साहिब में आयोजित गुरु गोविंद सिंह जी के मेले में गए थे। जत्थे के साथ गए मंगल कमजोर याददाश्त के चलते भटक गए। साथ गए परिजनों ने काफ़ी ढूंढा, लेकिन निराश हुए। उधर, राह भटकते-भटकते मंगल पटना से मुग़लसराय पहुंचे और फिर राम की नगरी अयोध्या में। वहां से फैज़ाबाद और लोकल ट्रेन पकडक़र बड़ागांव रेलवे स्टेशन। भटकने का सिलसिला जारी रहा, कभी सोहावल, देवराकोट तो कभी रुदौली और बड़ागांव। रात अक्सर बड़ागांव स्टेशन पर ही गुजरती। पास में स्थित जगप्रसाद टी स्टॉल पर चाय की चुस्कियां लेते तो कभी-कभार रात का खाना यहीं मिल जाता और प्लेटफार्म की यात्री सीट पर को बिस्तर बना लिया था।

ईद की चांद रात को मंगल की उम्मीद टिमटिमाई

14 जून को रात आठ बजे मंगल की मुलाकात नेचुरल जर्नलिस्ट श्रीकांत मिश्र से चाय के होटल पर हुई। नाम के अलावा सब कुछ भूल चुके मंगल एक अबूझ पहेली से कम नहीं थे। ईद पर पाकिस्तान, बाघा बॉर्डर और पंजाब की चर्चा चली, अचानक मंगल चहक उठे। बिल्कुल बजरंगी भाईजान फिल्म की गुडिय़ा की तरह बताया कि उधर ही पिंड है। अब श्रीकांत की पत्रकारिता की परीक्षा थी। करीब साढ़े चार घण्टे की कड़ी मशक्कत के बाद चंडीगढ़, अमृतसर के साथियों और पंजाब के पुलिस-प्रशासन से छानबीन के बाद अजनाला तहसील में कंडहेर थाने के एसएचओ हरपाल सिंह से बात हुई। उन्होंने मंगल से पंजाबी भाषा में संवाद किया, फिर तेड़ा कलां के सरपंच सरदार अनूप सिंह से यकीन किया कि फैजाबाद में श्रीकांत के साथ मौजूद शख्स इलाके का गुमशुदा मंगल सिंह है। फिर वीडियो कॉल के माध्यम से मंगल के भाई सरदार सुखदेव सिंह और दिलदार सिंह ने बात कराई गई। उन्होंने बताया कि दिसंबर 2017 से उम्मीद खो चुके थे।

अब चुनौती थी मंगल को सकुशल घर पहुंचाने की

घूमंतू पत्रकार श्रीकांत ने अपने साथी ज्ञानप्रकाश उपाध्याय को पूरी कहानी बताई। लखनऊ में ज्ञान प्रकाश ने दुआ फाऊंडेशन की टीम से संपर्क साधकर रात में ही सडक़ मार्ग से अमृतसर निकलने का प्लान बनाया। प्लान तैयार था तो अब मंगल को तैयार करना था। सबसे पहले मंगल को नहलाकर साफ सुथरे कपड़े पहनाये गए। बड़ागांव से बाघा बॉर्डर का सफर रात दो बजे शुरू होता है। रात साढ़े तीन बजे राजधानी लखनऊ में मंगल को लेकर श्रीकांत मिश्र, ज्ञान प्रकाश उपाध्याय, ओंकार उपाध्याय, अरुण कुमार और पवन सिंह के साथ अमृतसर स्थित गांव के लिए चल पड़े। आगरा एक्सप्रेस-वे से दिल्ली, फिऱ करनाल, अंबाला और फगवाड़ा होते हुए लुधियाना, जालंधर और शाम छह बजे अमृतसर। अमृतसर पहुंचते ही मंगल को कुछ कुछ याद आने लगा। अपना पिंड, स्वर्ण मंदिर और गुरु ग्रंथ साहिब जी का दरबार।

गांव में टीम का हुआ स्वागत-सत्कार

गांव में मंगल के वापस आने की खुशियां मनाई जा रही थीं। तेड़ा पिंड के आसपास गांव के लोग भी मंगल और उन्हें लाने वाली टीम के स्वागत में फूल माला लिए खड़े थे। गांव पहुंचते ही, जो बोले सो निहाल…..से पूरा इलाका गूंज उठा। ढोल नगाड़े बजने लगे और युवाओं ने पटाख़े फोडक़र जश्न मनाना शुरू कर दिया। कंडहेर के थाना प्रभारी हरपाल सिंह भी मय फोर्स गांव वालों के जश्न में शरीक हुए। औरतें, बूढ़े और बच्चे सब टकटकी लगाए मंगल को देख रहे थे और मंगल की लौटी याददाश्त, दुहाई देने वाली आंखें उनके मददगार से हाथ जोड़े शुक्रिया अदा करा रहीं थी। बकौल सुखदेव सिंह, यकीन नहीं हो रहा है कि मेरा भाई वापस जिंदा लौट आया है। उसकी याददाश्त भी लौट आई। इसका मैं कैसे शुक्रिया अदा करूं। परवरदिगार का लख-लख शुक्र है मंगल आज दूसरी जि़न्दगी लेकर लौटा है। आप लोग मेरे परिवार के लिये फरिश्ते से कम नहीं हैं।
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