scriptAugust Kranti: 18 अगस्त 1942 को तरवां थाना फूंक क्रांतिकारियों ने दी थी अंग्रेजों को खुली चुनौती | 18 August 1942 revolutionaries gave open challenge to British by blowing up Tarwan police station in azamgarh | Patrika News

August Kranti: 18 अगस्त 1942 को तरवां थाना फूंक क्रांतिकारियों ने दी थी अंग्रेजों को खुली चुनौती

locationआजमगढ़Published: Aug 10, 2022 11:42:58 am

Submitted by:

Ranvijay Singh

आजदी की लड़ाई में आजमगढ़ जिले के रामहर्ष सिंह और उनके साथियों का महत्वपूर्ण योगदान था। 18 अगस्त 1942 को क्रांतिकारियों ने तरवां थाने को आग के हवाले कर अंग्रेजों को खुली चुनाती दी थी। इसके बाद उन्होंने कई थाने और रेलवे स्टेशन को आग के हवाले कर अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। रामहर्ष सिंह आजादी के बाद नैनी जेल से रिहा हुए और उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

स्वतंत्रा संग्राम सेनानी रामहर्ष सिंह (फाइल फोटो)

स्वतंत्रा संग्राम सेनानी रामहर्ष सिंह (फाइल फोटो)

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
आजमगढ़. 18 अगस्त 1942 को जिले के स्वतंत्रा संग्राम सेनानियों ने अंग्रेजों को खुली चुनौती दी थी। उन्होंने रामहर्ष सिंह के नेतृत्व में इसी दिन तरवां थाने को आग के हवाले किया था। यही नहीं 04 फरवरी 1943 जब क्रांतिकारियों ने फूलपुर रेलवे स्टेशन को भी आग के हवाले कर वहां तिरंगा फहरा दिया था। इसके बाद राम हर्ष सिंह का लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा था। देश आजाद होने के बाद उन्हें नैनी जेल से रिहाई मिली। बाद में उन्हें दो बार राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यहीं नहीं नाइजीरिया ने भी इस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को सम्मानित किया। आज राम हर्ष सिंह हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनका देश की आजादी के लिए किया गया संर्घष लोगों के जेहन में ताजा है।

लालगंज तहसील क्षेत्र के ओघनी गांव में 28 फरवरी 1912 को जन्मे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामहर्ष सिंह के भीतर बचपन से ही अंग्रेजों के जुल्म से आजादी की छटपटाहट थी। सुभाष चंद्र बोस के नारे से प्रभावित होकर रामहर्ष सिंह आजादी की लड़ाई में कूदे थे। उन्होंने अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ 18 अगस्त 1942 को तरवां थाने को फूंक दिया था। इस मामले में उनके खिलाफ मुख्य अभियुक्त के तौर मुकदमा दर्ज हुआ था। इस घटना में तेजबहादुर सिहं, रामहर्ष सिंह सहित सैकड़ों लोग शामिल थे। क्रांतिकारी तरवां थाने का असलहा व रजिस्टर लूटकर साथ लाए थे। इस घटना के बाद पूरे क्षेत्र में घोडे़ पर सवार होकर बच्चेलाल शास्त्री व रामहर्ष सिंह ने जनता को आजादी का संदेश दिया।

इस घटना से अंग्रेज इतने भयभीत हुए कि काफी दिनों तक तरवां थाने पर कोई भी चार्ज लेने नहीं पहुंचा। इसके बाद 04 फरवरी 1943 को फूलपुर रेलवे स्टेशन को आग के हवाले कर तिरंगा फहराया गया। इस घटना के बाद ही रामहर्ष सिंह को अंग्रेज गिरफ्तार करने में सफल हो गए थे। उन्हें नैनी जेल भेज दिया गया था। वर्ष 1947 में देश आजाद होने के बाद लालबहादुर शास्त्री के प्रयास से इलाहाबाद के नैनी सेंट्रल जेल से उनकी रिहाई संभव हो सकी। उनके सुपुत्र शांतिभूषण सिंह वर्तमान में नाइजीरिया में इंजीनियर पद पर कार्यरत हैं और परिवार सहित वहीं रहते हैं।

उनके विशेष आग्रह पर दो दशक पूर्व रामहर्ष सिंह अपनी पत्नी देवमती देवी के साथ नाइजीरिया गए थे। भारत की आजादी में उनके योगदान की जानकारी पाकर लागोस स्टेट आफ चीफ इन नाइजीरिया ने स्वतंत्रता सेनानी को रात्रि भोज पर आमंत्रित किया था। उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए श्री सिंह सपरिवार उक्त कार्यक्रम में शामिल हुए। जहां उन्हें सम्मानित किया गया। इसके अलावा दो बार उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 27 जुलाई 2014 को 104 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। इनके पांच पुत्र डा. शशिभूषण सिंह, इंद्रभूषण सिंह उर्फ कमलेश सिंह, राजेश सिंह, शांतिभूषण सिंह और योगेश सिंह हैं। आज रामहर्ष सिंह भले ही हमारे बीच में न हों लेकिन उनके द्वारा देश की आजादी के लिए किए गए संघर्ष को आज भी लोग याद करते हैं।

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