आजमगढ़ और हिंदी उर्दू अदब
इन्कालबे-जमाना नामक उर्दू पत्र के संपादक थे कैफी

आज़मगढ़. लखनऊ के बाद नबाबी ठाट और उर्दू अदब की बात होती है तो बरबस ही इस जिले का नाम जेहन में कौंध जाता है। उर्दू के प्रसिद्व कवि इकबाल सुहेल, प्रसिद्ध समालोचक अल्लामा शिबली नोमानी और डा. सुलेमान नदवी जैसी विभुतियों ने इस धरती पर जन्म लिया। जामी की जन्मभूमि चिरैयाकोट का भी ज्ञान क्षेत्र में बड़ा योगदान रहा है। इनके पितामह मो. फारूख चिरैयाकोटी अपने समय के प्रख्यात विद्वान थे। शिबली नोमानी को भी उनसे उनके घर रहकर शिक्षा प्राप्त करने का गैरव प्राप्त हुआ था। इनके पिता अल्लामा कैफी चिरैयाकोटी प्रसिद्व राष्ट्रीय कवि और स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। वे इन्कालबे-जमाना नामक उर्दू पत्र के संपादक भी थे। जो कलकत्ता से निकलता था। हिन्दुस्तानी एकेडमी प्रयाग से प्रकाशित उनका उर्दू साहित्य का इतिहास जवाहिरे सुखन सात भागो में है । इसी यशस्वी कुल परम्परा में जामी ने भी आगे बढय़ा।
जामी की परम्परा उर्दू की है। उनके ऊपर अपने पिता कैफी साहब के साथ ही इकबाल, हाली, चकबस्त, और सुरूर की राष्ट्रीय कविताओं का प्रभाव पड़ा और समसामयिक कवियों में शमीम करहानी, कैफी आज़मी, बेकल उत्साही, सागर आज़मी, बिस्मिल इलाहाबादी आदी कविताओं के ढॉंचे में उन्होंनें भी अपने काव्य को ढालने का प्रयास किया। उन्होने विश्वनाथ लाल शैदा से भी प्रेरणा पाई थी। शैदा भी जामी के पिता कैफी साहब के योग्य शिष्यो में से थे । जामी को उर्दू का शायर कहा जाए या हिन्दी का कवि यह एक प्रश्न है । इन्हे दोनों ही कहा जा सकता है पर वे उर्दू की उस परम्परा के कवि नहीं जिनके लिए कहा गया है कि श्नही है सहल दाग़ यारो से कह दो, की आती है उर्दू ज़बा आते आते। और न ही वे उस हिन्दी के कवि है जो दुरूह शब्दो के बोझ से लदी हो । वे उस उर्दू के कवि थे जो हिन्दी की बेशक एक शैली है और सचमुच वह हिन्दी की सगी बहन है। जामी की कविताओं की महत्ता उनके शुद्व राष्ट्रीय सोच के कारण है उनमें एक सच्चे भारतीय का हृदय था। जैसे गंगा-यमुना के पवित्र जल में वह आस्था है जो आबे ज़मज़म से किसी भी तरह कम नही है। स्वामी विवेकानंद के उस संदेश को कि आज भारतवासीयों के लिए भारत माता ही एकमात्र उपास्य है, इस कवि ने आत्मसात किया और वह बड़े अभिमान के साथ इस पुस्तक में लिखता है कि
अगर मैं करूंगा इबादत किसी की,
तो खाके वतन की इबादत करूगा।
राष्ट्रीय समस्याओं और अपने देश के क्षितज पर उभरने वाली महत्वपूर्ण धटनाओं पर इनके हृदय की भावोर्मियां तंरगित हो उठती थी। काश्मीर पर पाकिस्तान के आक्रमण की घटना को कवि हृदय को काश्मीर पर सुन्दर कविता लिखने को बाघ्य किया था, जिसमें काश्मीर के प्रति एक भारतीय आत्मा की पुकार साकार हो उठी है । काश्मीर के संबन्ध में कवि की दृष्टि इन पंक्तियो में साफ झलकती है।
तू निराले रूप का धरती पे है इक गुलसितां,
तेरी खुशबू से महकता है सदा सारा जहां।
तू ज़मीं की खुल्द है तेरी बहारों को सलाम,
खि़त्तए काश्मीर तेरे कोहसारो को सलाम।।
राष्ट्रीय कविताओं और लेखन के कारण इन्हें शायरे वतन कहा गया इनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकें धरती का चिराग, सितारों से आगें, लहरें अचरवा धरती का(भोजपुरी काव्य संग्रह) भी है। वे आजीवन आकाशवाणी गोरखपुर से भी जुडे रहे। अपनी लेखनी में उन्होंने राष्ट्रीयता, देश प्रेम और सामाजिक मूल्यों को बड़े ही दिलकश अंदाज़ में प्रस्तुत किया।
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