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हिंसा का हैदराबाद कनेक्शन: 2016 की तरह फिर आजमगढ़ को जलाने की हुई साजिश

locationआजमगढ़Published: May 09, 2018 04:41:27 pm

दोनों ही बार सामने होने के बाद भी नहीं पकड़ा गया मुख्य आरोपी, पुलिस ने हैदराबाद भागने का दिया पूरा मौका

again try for communal violence in azamgarh accused not arrest

हिंसा का हैदराबाद कनेक्शन: 2016 की तरह फिर आजमगढ़ को जलाने की हुई साजिश

आजमगढ़. कितना अजीब है। मामूली सा विवाद हो जाय और आरोपी आम आदमी हो तो पुलिस उसे जेल भेजने से नहीं चूकती है, लेकिन रसूख वाला व्यक्ति दंगा भी करा दे तो पुलिस उस पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं करती। जिले में 2016 में दंगा हुआ और सीओ को गोली मार दी गई, लेकिन पुलिस ने मुख्य आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया बल्कि चार्जशीट तैयार करती रही। उसी ने अब 2018 में हिंसा भड़काने की साजिश रची। थाने में घुसकर तोड़फोड़ हई तथा सीओ और एसडीएम पीटे गए, लेकिन भारी फोर्स के बीच मुख्य आरोपी फरार हो गया। शासन से सख्त रूख अपना तो आरोपी हैदराबाद भाग गया। अब पुलिस लकीर पीट रही है। पिछले दंगे के बाद भी यही कहा गया कि, आरोपी हैदराबाद भाग गया है। लेकिन वह पीस कमेटी की बैठक से लेकर थाने का घेराव करने तक में शामिल रहा। आम आदमी यह नहीं समझ पा रहा कि, पुलिस चाहती क्या हैं। क्या फिर सांप्रदायिकता की आग में जलने का इंतजार किया जा रहा है या फिर कुछ और?
बता दें कि, वर्ष 2016 में होली के दिन निजामाबाद थाना क्षेत्र के खोदादादपुर में रंग फेंकने को लेकर दो समुदाय के बीच तनाव हुआ था, लेकिन इस घटना को पुलिस ने गंभीरत से नहीं लिया। परिणाम रहा की भीतर ही भीतर आग सुलगती रही 15 मई 2016 को सांप्रदायिक दंगा हो गया। इस दंगों में जहां आगजनी तोड़फोड़ हुई सीओ सदर को गोली लगने के घायल हो गए। दंगा इतना भयानक था कि, पैरा मिलिट्री की मदद लेने के साथ ही जिले में इंटरनेट सेवा कई दिन के लिए बंद करना पड़ा था।
इस दंगे का मुख्य आरोपी एआईएमआईएम का जिलाध्यक्ष कलीम जामई बनाया गया। कलीम सरायमीर थाने का हिस्ट्रीशीटर है, लेकिन पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया बल्कि उसके खिलाफ चार्जशीट बनाती रही। बाद में कहा गया कि, वह हैदारबाद ओवैसी की शरण में भाग गया है। पिछले डेढ़ साल से कलीम सरायमीर में खुलेआम घूम रहा था, लेकिन पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया।
इसी बीच 27 अप्रैल 2018 को फेसबुक पर पैगंबर के खिलाफ अभद्र टिप्पणी पोस्ट होने के बाद कलीम जामई और पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष ओबैर्दुहमान के नेतृत्व में लोगों ने थाने का घेराव किया। पुलिस ने मामला पंजीकृत कर पोस्ट करने वाले को जेल में भेज दिया। इसके बाद भी कलीम ने राजनीति चमकाने और पुलिस पर अपना दबाव कायम रखने के लिए अगले दिन थाने का फिर घेराव किया।
सीओ और एसडीएम ने उक्त लोगों के साथ बैठक कर आरोपी पर एनएसए लगाने की मांग पर विचार का आश्वासन दिया, लेकिन थोड़ी देर बाद थाने पर हमला कर दिया गया। ऐसा लगा कि, मानो यह सोची समझी रणनीति का हिस्सा रहा हो। उपद्रव में सीओ और एसडीएम घायल हो गए।
थाने और पुलिस बूथे के साथ ही बैक एटीम में तोड़फोड़ की गई। यही नहीं बूथ में आगजनी की गई लेकिन पुलिस ने उस समय कलीम की गिरफ्तारी की बजाय खुद को बचाने पर ध्यान दिया। जबकि कलीम इस घटना के चार दिन पहले ही फेसबुक पर थानाध्यक्ष रामनरेश यादव के खिलाफ अभद्र टिप्पणी कर चुका था, खुद एसओ ने उनके खिलाफ एफआईआर कराई थी। अगर उसे उस समय गिरफ्तार किया गया होता तब भी हिंसा की नौबत नहीं आती।
इतनी बड़ी वारदात के दो दिन बाद पुलिस ने उस समय उसकी गिरफ्तारी का प्रयास शुरू किया। जब शासन और नए एसपी का दबाव पड़ा, लेकिन तब तक वह हैदराबाद ओवैसी की शरण में जा चुका था। पुलिस की माने तो उसकी गिरफ्तारी के लिए हैदराबाद टीम भेजी गई, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात वाला रहा। अब पुलिस लकीर पीट रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि, पुलिस रसूख वालों को हमेशा से संरक्षण देती रही है। यही वजह है कि, अब ये लोग समाज के साथ ही पुलिस के लिए भी सिरदर्द बन गए हैं।
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