बता दें कि आजमगढ़ जिला हमेशा से समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा है। अस्तित्व में आने के बाद से ही सपा यहां राज करती रही है। वर्ष 2014 की मोदी लहर में बीजेपी आजमगढ़ जिले की लालगंज सीट जरूर जीतने में कामियाब हुई थी लेकिन आजमगढ़ संसदीय सीट से मुलायम सिंह यादव सांसद चुने गए थे। यह अलग बात है कि बीजेपी के रमाकांत यादव ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी। मुलायम सिंह मात्र 63 हजार वोटों से जीते थे। बसपा के गुड्डू जमाली तीसरे स्थान पर थे। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को यहां दस में से 9 सीटें मिली थी। सिर्फ एक सीट बसपा के खाते में गई थी। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में पूरे यूपी में बीजेपी की लहर थी लेकिन सपा पांच और बसपा चार विधानसभा सीट जीतने में सफल रही थी। केवल एक सीट फूूलपुर पवई बीजेपी के खाते में गई थी।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा गठबंधन दोनों लोकसभा सीट जीत ने में सफल रही थी। अखिलेश यादव आजमगढ़ सीट से सांसद चुने गए थे। बीजेपी का यहां खाता नहीं खुला था तो वर्ष 2022 की विधानसभा चुनव में सपा ने सभी दस सीटों पर कब्जा किया है। विधानसभा चुनाव के बाद अखिलेश यादव द्वारा संसदीय सीट से त्यागपत्र देने के बाद यहां उपचुनाव हो रहा है। सपा को सीट का प्रबल दावेदार माना जा रहा है लेकिन बीजेपी ने यहां एक बार फिर फिल्म स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ पर दाव लगाया है जिन्होंने वर्ष 2019 में अखिलेश को कड़ी टक्कर दी थी। वहीं बसप ने गुड्डू जमाली को मैदान में उतारा है जो वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम से चुनाव लड़ने के बाद भी 36 हजार वोट हासिल करने में सफल रहे थे। जमाली नेे 2014 में मुलायम सिंह को भी कड़ी टक्कर दी थी।
सपा ने पहली बार यहां दलित नेता पूर्व सांसद बलिहारी बाबू के पुत्र सुशील आनंद पर दाव लगाया था लेकिन पार्टी ने कुछ ही घंटों में उन्हों किनारे कर दिया और अखिलेश यादव ने अपने चचेरे भाई पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतार दिया। इससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है लेेकिन सपा की मुश्किल भी बढ़ गयी है। कारण कि अखिलेश के फैसले से दलित कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ी है। सपा का मकसद ही था सुशील आनंद के जरिए दलितों को साधना था ताकि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में इसका फायदा उठाया जा सके लेकिन अखिलेश के फैसले से अब सपा का उपचुनाव में ही नुकसान होता दिख रहा है।