बता दें कि बीजेपी ने यहां फिल्म स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ को मैदान में उतारा है। वहीं बसपा से शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली मैदान में हैं तो अखिलेश यादव ने अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को टिकट दिया है। देखा जाय तो निरहुआ की जीत सुनिश्चत करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, ऊर्जा मंत्री एके शर्मा ने जनसभा को संबोधित किया। वहीं कई पूर्व केंद्रीय मंत्रियों और कैबिनेट मंत्री व विधायकों को भी प्रचार में लगाया गया है। बीजेपी के विभिन्न संगठन भी चुनाव में पूरी ताकत झोंक दिये हैं।
वहीं दूसरी तरफ बसपा प्रत्याशी शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को पार्टी के आधार वोट पर भरोसा है तो राष्ट्रीय उलमा कौंसिल का भी समर्थन मिल गया है। यही नहीं बसपा के एकलौते विधायक उमाशंकर सिंह सहित पार्टी के सारे कोआर्डिनेटर मैदान में उतर गए हैं। वहीं सपा प्रत्याशी के लिए मुख्तार अंसारी के पुत्र विधायक अब्बास अंसारी, विधायक अब्दुल्ला आजम, आजम खान, रामगोपाल यादव मैदान में नजर आए लेकिन सपा मुखिया यहां चुनाव प्रचार के लिए नहीं आए जिसके कारण यह सुर्खियों में है। कारण कि यह पहला चुनाव है जिससे सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने दूरी बनायी है।
सपा का दावा है कि यह उप चुनाव हम अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के आए बिना ही भारी मतों के अंतर से जीत लेंगे। इस उपचुनाव में जनता सपा मुखिया अखिलेश यादव के आने का इंतजार कर रह रही थी, लेकिन समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष हवलदार यादव ने स्पष्ट किया कि पार्टी की तरफ से चुनावी जनसभा के लिए प्रस्ताव ही नहीं भेजा गया, क्योंकि जनता और पार्टी पदाधिकारियों के बल पर हम उप चुनाव जीत लेंगे।
अब सपा के दावों में कितना दम है यह तो समय बताएगा लेकिन हकीकत यह है कि यहां चुनाव त्रिकोणीय फंसा है। सपा को बीजेपी और बीएसपी से बराबर की टक्कर मिलती दिख रही है। खासतौर पर उलेमा कौंसिल के समर्थन के बाद बसपा की दावेदारी मजबूत हुई है। चुनाव में मुस्लिम और अदर बैकवर्ड मतदाता निर्णायक की भूमिका में दिख रहे है। सपा ने मुस्लिम मतों को साधने के लिए फौज तो उतारी लेकिन ओमप्रकाश राजभर को छोड़कर कई बड़ा अति पिछड़ी जाति का नेता नजर नहीं आया। उपर से अखिलेश ने भी चुनाव से दूरी बना ली।