खासतौर पर सदन में नाराज भाजपाइयों के भी पीएम के साथ खड़े होने के बाद विपक्ष की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है। वहीं स्थानीय स्तर पर भी गठबंधन में आने वाली दिक्कतों और गुटबंदी की चर्चा आम हो गयी है और माना जा रहा है कि इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलता दिख रहा है।
कारण कि गठबंधन की स्थित में गुटबाजी और महत्वाकांक्षा उभरकर सामने आनी तय है और ऐसा हुआ तो नाराज लोगों के पास कोई विकल्प नहीं होगा। बता दें कि यूपी में सपा, बसपा, कांग्रेस, पीस पार्टी और निषाद पार्टी मिलकर तीन लोकसभा और एक विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी को मात दे चुकी है। अब लोकसभा चुनाव 219 में इन दलों के बीच महागठबंधन की चर्चा चल रही है। खास तौर पर सपा मुखिया अखिलेश यादव लगातार गठबंधन को लेकर प्रयासरत है। वे यहां तक कह चुके हैं कि कम सीटों पर भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। बसपा मुखिया मायावती भी लगभग गठबंधन के लिए तैयार दिख रही है।
इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि चार दिन पूर्व राहुल गांधी के खिलाफ टिप्पणी के कारण पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष को पद से हाथ धोना पड़ा था लेकिन दूसरी तरफ बसपा मुखिया ने सपा का गढ कहे जाने वाले आजमगढ़ की लालगंज और जौनपुर जिले की संसदीय सीट पर प्रत्याशी की घोषणा भी कर दी है। यहीं नहीं सूत्रों की माने तो मायावती गठबंधन में मुलायम सिंह की संसदीय सीट भी चाहती हैं।
वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस से डा. संतोष सिंह, ओम प्रकाश राय सहित कई उम्मीदवार आजमगढ़ सीट से दावेदारी कर रहे हैं तो बसपा से टिकट की लंबी फेहरिश्त है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बलराम यादव खुद के लिए या अपने पुत्र विधायक डा. संग्राम यादव के लिए टिकट चाहते हैं तो उनके धुर विरोधी जिलाध्यक्ष हवलदार यादव, पूर्व मंत्री दुर्गा प्रसाद आदि भी टिकट की लाइन में है। इन्हें भरोसा है कि सीट उन्हीं के खाते में जाएगी। सपा की गुटबंदी किसी से छुपी नही है। आपसी लड़ाई में दो बार अपने के चलते सपा आजमगढ़ संसदीय सीट हार चुकी है।
यहां दलितो और यादवों के बीच लंबे समय से लड़ाई चल रही है। यहां का दलित यादव को और यादव दलित को मतदान नहीं करता है। एक तरफ पार्टिंयों की अंदरूनी लड़ाई और दूसरी तरफ जातिगत विरोध और नेताओं की महत्वाकांक्षा गठबंधन की राह को कठिन बनाता दिख रहा है।
यहां का मुस्लिम मतदाता कभी किसी एक दल के साथ नहीं रहा वह हमेशा बीजेपी को हराने के लिए मतदान करता है। गठबंधन की स्थित में इन दलों के साथ पूरी ताकत के साथ खड़े होगे लेकिन पार्टी के अंदर जो गुटबाजी है और यादव तथा दलितों के बीच की जंग उससे पार पाना इनके लिए आसान नहीं होगा।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि जो नाराज नेता होंगे या जो जातियां एक दूसरे को मतदान नहीं करती है उनके सामने गठबंधन के बाद कोई विकल्प नहीं होगा। कारण कि एक तरफ विपक्ष होगा और दूसरी तरफ बीजेपी। ऐसी परिस्थिति में फायदा बीजेपी को मिल सकता है। खासतौर पर आजमगढ़ में जहां 2015 से 2017 के बीच कई बार दंगे हुए तो कुछ स्थानों पर जातीय हिंसा भी हुई।