नीलगाय (घडरोज) किसानों के लिए बड़ी समस्या बन गयी है। गोवंश मानने के कारण इनका वध भी नहीं किया जा सकता और इनसे फसल बचाना काफी मुश्किल भरा काम है। जंगल झाडियों के समाप्त होने के बाद नीलगाय खेतों में शरण ले रही हैं। यह गन्ना, अरहर आदि के खेत में छिपी रहती हैं और मौका पाते ही बाहर निकलकर फसलों को खाने के साथ ही नष्ट भी कर देती हैं। इससे किसानों को भारी आर्थिक क्षति होती है।
देशी पद्धति से तैयार घरेलू दवा की विधि :- कृषि विज्ञान केंद्र कोटवां के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डा. आरपी सिंह बताते हैं कि प्रतिवर्ष फसलों को 4 से 5 प्रतिशत नुकसान जंगली पशु पहुंचाते हैं। इन जंगली पशुओं से खेती को बचाने के लिए जैविक, देशी पद्धति से घरेलू दवा तैयार की जा सकती है। घरेलू विधा में पांच लीटर गोमूत्र, ढाई किलो नीम की पत्ती, ढाई किलो बकाईन की पत्ती, एक किलो धतूरा व एक किलो मदार की पत्ती, ढाई सौ ग्राम लाल मिर्च का बीज, ढाई सौ ग्राम लहसुन, ढाई सौ ग्राम पत्ता सुर्ती, एक किलो ग्राम नीलगाय के मल को आपस में मिला लें। फिर इसे मिट्टी के बर्तन में डालकर बर्तन के मुंह को 25 दिन के लिए पूरी तरह बंद कर दें। मुंह ऐसे बंद करें कि किसी भी हालत में हवा भीतर प्रवेश न करे। एक बात का ध्यान दें कि जिस पात्र में इसे रखा जाये उसका 1.3 हिस्सा खाली रहना चाहिए। अन्यथा दवा सड़ाव के दौरान कार्बनिक गैस उत्पन्न होने पर बर्तन फट सकता है।
फसलों के करीब नहीं आएगा पशु :- सड़ाव में उत्पन्न कार्बनिक गैस के प्रभाव से ही दवा असरकारक व तीव्र गंधयुक्त होती है। दवा को 25 दिन सड़ाने के बाद इसे खोलें और घड़े से 50 फीसदी दवा लें और 100 लीटर पानी में मिलाएं। उसमें 250 ग्राम सर्फ मिलाकर प्रति बीघा छिड़काव करें। इस दवा के छिड़काव के बाद कोई भी पशु आपकी फसलों के करीब नहीं आयेगा।
जितनी पुरानी दवा उतनी ही असरकारक :- वैज्ञानिकों ने बताया कि खड़ी फसल (खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, गन्ना, मक्का आदि), साग, सब्जियों पर छिड़काव कर फसल को बचाया जा सकता है। पात्र में तैयार दवा प्रयोग भर ही निकलाने के बाद शेष दवा को ढककर रखना चाहिए क्योंकि दवा जितनी पुरानी होगी, उतनी ही असर कारक होगी। कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि जनपद के सठियांव, तहबरपुर, पल्हनी, अतरौलिया, मेंहनगर आदि क्षेत्रों के किसान इन दवाओं का छिड़काव कर अपने फसलों को बचा रहे हैं।