बता दें कि आजमगढ़ में पहला उपचुनाव वर्ष 1978 में हुआ था जब पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव के त्यागपत्र देने से आजमगढ़ सीट खाली हुई थी। उस समय कांग्रेस ने मुस्लिम प्रत्याशी मोहसिना किदवई को मैदान मेें उतारा था। उस चुनाव में मोहसिना किदवई 1.30 लाख मत हासिल कर सांसद चुनी गयी जबकि जनता पार्टी के रामवचन यादव को मात्र 95 हजार वोट मिले जबकि कांग्रेस एस के पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रजीत यादव को मात्र 17 हजार वोट मिला था। जबकि उस चुनाव में चंद्रजीत और रामवचन यादव को जीत का दावेदार माना जाता था। इस परिणाम ने उत्तर भारत में कांग्रेस का संजीवनी प्रदान की थी।
इसके बाद वर्ष 2008 में बाहुबली रमाकांत यादव बसपा छोड़कर बीजेपी में शमिल हुए तो उपचुनाव कराया गया। उस समय बसपा ने अकबर अहमद डंपी को मैदान में उतारा था। जबकि बीजेपी ने बलराम यादव और बीजेपी ने बाहुबली रमाकांत यादव पर दाव लगाया था। उस चुनाव में डंपी ने रमाकांत को 45 हजार के अंतर से हराया था। जबकि सपा तीसरे पर चली गयी थी। वर्ष 2022 में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सीट छोड़ने के बाद उपचुनाव हुआ तो बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली पर दाव लगाया। जबकि सपा ने धर्मेंद्र्र यादव और बीजेपी ने दिनेश लाल यादव निरहुआ को मैदान में उतारा।
उपचुनाव में जिस तरह से पीस पार्टी, एआईएमआईएम और उलेमा कौंसिल ने बसपा का समर्थन किया उसके बाद जमाली की दावेदारी सबसे मजबूत मानी जा रही थी। लोग यहां तक कहने लगे कि उपचुनाव में मुस्लिम प्रत्याशियों का दबदबा कायम रह सकता है लेकिन मुस्लिम मतदाता जमाली के साथ नहीं खड़े हुए। परिणाम रहा कि जमाली को वर्ष 2014 से भी कम वोट मिला। जबकि 2014 में जमाली के खिलाफ मुलायम सिंह यादव थे। उस समय जमाली 266528 मत हासिल किए थे। जबकि 2022 में उन्हें सिर्फ 266210 वोट मिले है। जीत निरहुआ ने हासिल की। इससे जहां बीजेपी को जिले में दूसरी जीत मिली वहीं निरहू पहले ही चुनाव में पहले ही गैर मुस्लिम सांसद बन गए।