गौर करें तो वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने आजमगढ़ सीट को छोड़ दिया जाय तो पूर्वांचल में विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था। आजमगढ़ सीट भी सपा इसलिए जीतने में सफल रही थी क्योंकि यहां से पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव मैदान में थे। अब सपा और बसपा के गठबंधन की चर्चा से बीजेपी की नींद उड़ी हुई है। खासतौर पर पूर्वांचल में जहां यादव, दलित और मुस्लिम हमेंशा से निर्णायक साबित हुए है। इनकी एकजुटता के बाद बीजेपी की मुसीबत बढ़नी तय है। भाजपा इस बात से वाकिफ है।
अब भाजपा का पूरा दारोमदार पूर्वांचल में अतिपिछड़ों और सवर्णो की एकजुटता पर निर्भर है। अगर यह बीजेपी के साथ 2014 और 2017 की तरह खड़े रहते हैं तभी पार्टी विपक्ष को चुनौती दे पाएगी। वैसे बीजेपी के लोग दलित मतों में सेंध लगाने के लिए लगातार कार्य कर रहे है। नेता दलित बस्तियों में कैंपकर उनके साथ भोजन कर रहे हैं और योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ इनतक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। बीजेपी दलितों के बीच यह संदेश देना चाहती है वह जातिगत आधार पर भेदभाव नहीं करती और गरीब और दलितों की असली हितैषी है। लेकिन बीजेपी अब तक यादव जाति में पैठ बनाने के लिए कोई कारगर दाव नहीं चल सकी है।
राजनीति के जानकारों की माने तो अब बीजेपी बाबा रामदेव के जरिये यादवों के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। आजमगढ़ को ही यहां स्वामी रामदेव तीन दिन के दौरे पर हैं। स्वामी रामदेव ने शहर से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों में समय दिया है और जहां भी उन्हें मौका मिला वे मोदी और उनकी नीतियों की तारीफ करने से नहीं चुके। यह अलग बात है कि, वे अपने हर कार्यक्रम में यह कहते रहे कि उनका राजनीति से कोई लेना देना नहीं है जो देशहित, समाज हित के लिए काम करता है वे उसके साथ हैं लेकिन चर्चा इस बात की है कि योग के बहाने कहीं न कहीं स्वामी रामदेव बीजेपी को फायदा पहुंचा रहे हैं। तर्क है कि स्वामी जी यादव जाति के है बड़ी संख्या में उनके अनुवायी भी यादव है अगर कुछ प्रतिशत लोगों पर भी स्वामी द्वारा की जा रही मोदी के तारीफ का असर हुआ और वे बीजेपी के साथ गए तो गठबंधन की हालत खराब हो सकती है।
input रणविजय सिंह