बता दें कि आजमगढ़ के मुबारकपुर में हुमायूं के समय बुनकर आये थे और तभी से यहां साड़ी का करोबार हो रहा है। मुबारकपुर की साड़ी को बनारसी साड़ी के नाम से भी जाना जाता है। यहां की सबसे बड़ी खासियत यह रही है कि बुनकर बनारसी के साथ ही ऐसी साड़ियां भी बनाते थे कि आम आदमी भी उसे खरीद सके। मुबारकपुर में आज भी 200 से लेकर 20 हजार तक की साड़ियां मिल जाती है। पहले जब बुनकर हैंडलूम पर बुनाई करते थे तो उन साड़ियों की अलग चमक होती थी लेकिन समय के साथ यहां बड़ी संख्या में पावरलूम लग गये हैं। वर्ष 1990 में हुए दंगे के बाद यहां का साड़ी व्यवसाय प्रभावित हुआ कारण कि बाहर से व्यापारी आने कम हो गये।
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इसके बाद से ही इस कारोबार पर यहां के लोकल व्यापारी और बुनकर समितियां शिकंजा कसने लगी और हालात ऐसे हुए बुनकर बर्वाद होता गया। बुनकरों को मिलने वाले लाभ को समितियां डकारती रही और करोड़ों रूपये का घोटाला कर डाला। बुनकरों की स्थिति खराब हुई तो वे या तो कारोबार बंद कर दूसरे राज्यों में कमाने चले गये या साहूकारों के कर्ज में डूब गये। पिछले एक दशक से हालात यह है कि बुनकर कारोबारियों से बुनाई का सामन लेते है और साड़ी बुनकर उन्हें देते है। बदले में व्यवसायी उन्हें बुनाई देता है। मजदूरी से अब उनकी जरूरत पूरी नहीं हो रही। यह भी पढ़ें
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वर्ष 2012 में यूपी में अखिलेश यादव की सरकार बनी तो मुबारकपुर में विपणन केंद्र बनाया, लेकिन आज तक बुनकरों को आवंटित नहीं हुआ। कुछ खास लोगों ने यहां कब्जा जमाया हुआ है। बुनकरों को किसी तरह की सरकारी सहायता भी नहीं मिल रही है। अब योगी सरकार भी इनकी तरफ ध्यान नहीं दे रही। यहां तक कि सरकार बनने के आठ माह बाद भी यहां बिजली की व्यवस्था नहीं सुधरी है। बदहाल बुनकार धीरे-धीरे कारोबार बंद कर रहे है। अनीस, अब्दुल, इसरार, मुस्ताक आदि का कहना है कि प्रधानमंत्री जिस तरह गरीब और बुनकर की बात करते है उससे हमें योगी सरकार से काफी उम्मीद थी लेकिन आज तक हालत जस के तस है। by Ran Vijay Singh