बता दें कि रमाकांत यादव वर्ष 2004 में सपा में अलग थलग पड़ गए थे। अमर सिंह, बलराम यादव और दुर्गा यादव के विरोध के कारण उन्हें सपा छोड़कर बसपा का दामन थामना पड़ा था। बसपा ने रमाकांत यादव को 2004 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ से चुनाव लड़ाया था और वे सांसद चुने गए थे लेकिन बसपा में भी उनकी नहीं बनी और व्यवसायिक उद्देश्यों की पूर्ति न होने के कारण रमाकांत यादव वर्ष 2008 में बसपा छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। बीजेपी जिला इकाई रमाकांत को पार्टी में लेने के खिलाफ थी लेकिन गोरक्ष पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ के दबाव के आगे पार्टी को झुकना पड़ा। रमाकांत को न केवल पार्टी में शामिल किया गया बल्कि वर्ष 2008 के लोकसभा उपचुनाव में प्रत्याशी बनाया गया। रमाकांत यादव यह चुनाव बसपा के अकबर अहमद डंपी से हार गये। इसके बाद वर्ष 2009 के आम चुनाव में बीजेपी द्वारा रमाकांत को मैदान में उतारा गया और वे आजमगढ़ से बीजेपी के पहले सांसद चुने गए लेकिन केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी।
वर्ष 2014 के चुनाव में रमाकांत यादव फिर बीजेपी के टिकट पर मैदान में उतरे लेकिन सपा ने इस सीट से मुलायम सिंह को मैदान में उतार दिया। परिणाम रहा कि रमाकांत यादव को हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी की केंद्र में सरकार बनी और पूर्वांचल में बीजेपी को मात्र इसी एक सीट पर हार मिली जिसके कारण रमाकांत को सरकार में जगह नहीं मिली। वैसे रमाकांत यादव की ठेकेदारी का दायरा पूरे देश में फैल गया लेकिन रमाकांत यादव इससे संतुष्ट नहीं हुए और वर्ष 2016 में पार्टी के खिलाफ ही बगावत शुरू कर दी। सबसे पहले उन्होंने गृहमंत्री राजनाथ सिंह पर हमला बोला और आरोप लगाया कि मुलायम सिंह के साथ साजिश कर राजनाथ वर्ष 2014 में खुद प्रधानमंत्री बनना चाहते थे लेकिन पूर्ण बहुमत मिलने के कारण पिछड़ी जाति के नरेंद्र मोदी को पीएम बनने का मौका मिला।
यह मामला किसी तरह शांत हुआ। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में रमाकांत यादव ने पत्नी, पुत्रबधु सहित पांच लोगों के लिए टिकट की मांग की लेकिन पार्टी ने उन्हें सिर्फ एक टिकट दिया। इसके बाद फिर रमाकांत ने मीडिया के सामने बगावती शुरू दिखाया लेकिन दो दिन बाद ही ठंडे पड़ गये। उस समय रमाकांत ने दावा किया कि वे निर्दल प्रत्याशी उतारेंगे और अगर उनके प्रत्याशी को बीजेपी से कम वोट मिला तो लोकसभा के लिए टिकट नहीं मांगेगे और पार्टी के लिए काम करते रहेंगे। रमाकांत ने अपने भाई की पुत्रबधू अर्चना को दीदारगंज से निर्दल चुनाव मैदान में भी उतारा लेकिन वह छह हजार वोट भी हासिल नहीं कर सकी जबकि बीजेपी प्रत्याशी को करीब 40 हजार मत मिले। यह रमाकांत के लिए बड़ा झटका था कारण कि बीजेपी यूपी में 325 सीट जीतकर आयी थी।
जब यूपी सरकार में भी रमाकांत की नहीं चली तो उन्होंने सीएम योगी को निशाना बनाना शुरू कर दिया। एक समय ऐसा आया कि जब रमाकांत की पोकलेन अवैध खनन में पकड़ी गयी और रमाकांत पूरी तरह बागी हो गये। इसके बाद से ही रमाकांत यादव सपा में वापसी का प्रयास कर रहे हैं। रमाकांत यादव अब तक सपा नेता अबू आसिम आजमी, प्रो. राम गोपाल यादव, पूर्व सीएम अखिलेश यादव के साथ मीटिंग कर चुके हैं लेकिन उनकी सपा में वापसी नहीं हो पाई हैं। कारण कि सपा में उनके विरोधी आज भी है जो नहीं चाहते रामाकांत वापस आयें। वहीं रमाकांत यादव को डर सता रहा है कि भाजपा 2019 में उन्हें उन्हें टिकट नहीं देगी। इसलिए वे लगातार सपा के नेताओं से सपर्क में है। सूत्रों की माने तो यही वजह है कि रमाकांत यादव लगातार मोदी के कार्यक्रम से दूरी बनाये हुए हैं। उन्हें डर है कि कहीं भाजपा में उनकी सक्रियता सपा में वापसी की राह बंद न कर दें।
रमाकांत ने अब तक बीजेपी के सवर्ण नेताओं का खुलकर विरोध किया है लेकिन पीएम मोदी के खिलाफ कभी कुछ नहीं बोले बल्कि उन्हें अच्छा नेता और पिछड़ों का हितैषी बताते रहे हैं उनके कार्यक्रम से दूरी बनाकर रमाकांत ने नई चर्चा को जन्म दे दिया है। माना जा रहा है कि सपा से हरी झंडी मिलने के कारण रमाकांत यादव ऐसा कर रहे हैं। अब मानसिक तौर पर उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़ लिया है बस सपा में वापसी की घोषणा बाकी है। वैसे रमाकांत यादव अभी इस मुद्दे पर कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं है।