बता दें कि राजनीतिक कैरियर पर खतरा देख रमाकांत लोकसभा चुनाव के पहले से ही सपा और बसपा का दरवाजा खटखटा रहे थे लेकिन उस समय महाराष्ट्र प्रांत के अध्यक्ष अबू आसिम आजमी के दबाव के बाद भी अखिलेश यादव ने रमाकांत को सपा में शामिल करने से मना कर दिया था। वहीं बसपा मुखिया ने भी रमाकांत को भाव नहीं दिया था। यहीं नहीं रमाकांत का बगावती सुर देख बीजेपी ने भी अंतिम समय में उनका टिकट काट दिया था।
इसके बाद राजनीतिक भविष्य को देखते हुए रमाकांत ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था और पार्टी ने उन्हें भदोही संसदीय सीट से मैदान में उतारा था। उस समय रमाकांत को लगा था कि भदोही के 2.5 लाख से अधिक यादव मतदाता उनके साथ खड़े होंगे और कांग्रेस का बेस वोट हासिल कर वे आसानी से चुनाव जीत जाएगे लेकिन यादव मतदाताओं ने रमाकांत का साथ नहीं दिया और बाहुबली की जमानत जब्त हो गयी।
इसके बाद से ही रमाकांत को अपना राजनीतिक भविष्य अंधकारमय दिख रहा था। कारण कि वे समझ गए थे कि आजमगढ़ के बाहर अब उनका वर्चश्व समाप्त हो चुका है और बीजेपी में उनके लिए दोबारा वापसी का दरवाजा बंद हो चुका है। ऐसे में चुनाव के बाद से ही वे सपा के दरवाजे पर दस्तक दे रहे थे। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा बसपा गठबंधन की करारी हार के बाद अखिलेश यादव को भी मजबूत साथियों की जरूरत महसूस होने लगी थी। इसलिए अखिलेश यादव पुराने गिले शिकवे और रमाकांत द्वारा मुलायम सिंह के खिलाफ 2014 में नामाकंन के समय लगवाया गया नारा मुलायम सिंह वापस जाओ लाठी लेकर भैस चाराओ को भूलकर गले लगा लिया।
अब रमाकांत यादव दलबल क साथ छह अक्टूबर को सपा की सदस्यता ग्रहण करने जा रहे है। रमाकांत द्वारा इसकी घोषणा के बाद ही कांग्रेस ने उनके खिलाफ बड़ी कार्रवाई करते हुए गुरूवार को छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया। इसके बाद से राजनीतिक हलचल और बढ़ गई है। निष्कासन के बाद से ही उनके समर्थक मुकर हो गए है। रमाकांत के करीबी नायब यादव, अखिलेश यादव, रामचंदर आदि का कहना है कि कांग्रेस खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की कहावत को चरिरार्थ कर रही है। जब रमाकांत यादव ने खुद पार्टी छोड़ दी है तो उनके निष्कासन का क्या मतलब है। वैसे इसके पूर्व रमाकांत यादव को वर्ष 2003 में सपा और वर्ष 2008 में बसपा पार्टी से निष्कासित कर चुकी है।