ज्योतिषाचार्य पंडित ओम तिवारी बताते हैं कि वर्ष 1904 में जब बरदह-अम्बारी मार्ग का निर्माण हो रहा था तब रास्ता निर्माण के लिये झाडिय़ों को साफ करने के दौरान एक शिवलिंग दिखा। लोगों ने शिवलिंग को निकालने के लिये खोदाई शरू की लेकिन वह उसका अंत नही पा सके। तभी वहां बंधवा गांव के रामटहल आ गए और उन्होंने लोगांे को बताया कि यह पातालपुरी शिवलिंग है। लोगों ने तत्काल शिवलिंग के चारो तरफ मिट्टी पाटकर अर्घ्य का निर्माण कर पूजा शुरू कर दी।
इसके बाद साधु परशुराम दास वर्ष 1911 में छोटी सी कुटी का निर्माण कर वहीं रहने लगे। वर्ष 1954 में चन्द्रशेखर दास जी महाराज बंधवा महादेव मंदिर पर आए और यहीं पर रहने लगे। उनके साथ शिष्य हरिदास भी रहते थे। वर्ष 1961 में उन्होंने अपने शिष्य हरिदास को किसी से तेज आवाज में बात करते सुना। महात्मा चन्द्रशेखर दास जी उस समय तप में लीन थे। पूजा से उठने के बाद उन्होंने हरिदास से शांत हो जाने के लिए कहा। 13 जनवरी 1961 से आज तक हरिदास जी महाराज मौन व्रत धारण किए हैं। आज वह मौन व्रत के साथ ही गोवा के एक मंदिर में तप साधना करते हैं।
चन्द्रशेखर दास जी की गोवा में मौत के बाद उनके शिष्य हरिदास उनकी अस्थियों को लेकर बंधवा महादेव मंदिर पहुंचे और उनकी समाधि बनवा दी। वर्तमान समय में इस मंदिर के पुजारी चन्द्रमा दास जी महाराज हैं। उन्होंने बताया कि मंदिर से सटी एक गुफा आज भी है जहां चन्दशेखर दास जी तपस्या करते थे। मंदिर से सटकर ही बेसो नदी बहती है जिसके किनारे शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है। यहां एक पीपल का पेड़ है जहां कोई भी झूठ बोलने से डरता है। महाशिवरात्रि व भादो मास की छठी तिथि को यहां मेला लगता है। सावन के पूरे महीने यहां रामचरित मानस का पाठ होता है। कर्मकांडी गिरिजा प्रसाद पाठक, देवी प्रसाद तिवारी व बाल व्यास हर्षित महाराज धीरज ने बताया कि यहां कराया गया रुद्राभिषेक काफी फलदायी होता है। उसका फल तुरंत मिलने लगता है।