बता दें कि भाजपा के बाहुबली पूर्व सांसद रमाकांत यादव को शुरू से सवर्ण विरोधी माना जाता है। दो दशक पूर्व उनपर क्षत्रियों की हत्या का आरोप भी लगा था। इससे बाद से ही रमाकांत यादव और सवर्णो के बीच दूरी बढ़ती गई। सपा और बसपा में रहते हुए रमाकांत यादव ने सवर्णो का खुलकर विरोध भी किया।
यहीं वजह है कि जब 2008 में रमाकांत यादव बसपा छोड़ भाजपा में शामिल हुए तो सवर्ण उन्हें अपना नहीं सका और लोकसभा उप चुनाव में उन्हें बसपा के अकबर अहमद डंपी से बड़ी हार का सामना करना पड़ा। खैर भाजपा आजादी के बाद पहली बार दूसरे स्थान पर आई इसलिए रमाकांत यादव को 2009 में दोबारा प्रत्याशी बनाया गया।
इस चुनाव में रमाकांत यादव को इस बात का एहसास हुआ था कि यदि भाजपा से जीतना है तो सवर्णो का साथ लेना होगा। यहीं वजह थी कि रमाकांत यादव ने तरवां क्षेत्र में तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष व वर्तमान गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ मंच शेयर करते हुए सवर्णो से खेद प्रकट किया।
रमाकांत यादव को इसका लाभ मिला और वे आसानी से 2009 का चुनाव जीतने में सफल रहे। वर्ष 2014 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ से चुनाव लड़े और इतना बड़ा नेता होने के बाद भी रमाकांत यादव ने कड़ी टक्कर दी। कारण कि सवर्ण के साथ ही अति पिछड़ा भी बीजेपी के पक्ष में लामबंद था।
लेकिन वर्ष 2016-17 में गृहमंत्री के मउ में कार्यक्रम के बाद रमाकांत यादव ने राजनाथ पर खुलकर हमला बोला और यह आरोप लगाया कि उन्हीं की वजह से बीजेपी की बबार्दी हुई। यहीं नहीं रमाकांत ने तो यहां तक कह दिया कि मुलायम सिंह के साथ साजिश कर देश का प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। इसके बाद क्षत्रिय महासभा के नेता रमाकांत सिंह सहित कई क्षत्रिय नेताओं ने खुलकर रमाकांत का विरोध किया।
अभी कुछ दिन पहले रमाकांत यादव का एक आडियो वायरल हुआ जिसमें वे क्षत्रिय या ब्राह्मण होने पर हाथ पैर तोडवाने की धमकी दे रहे थे। इसके बाद से सवर्ण एक बार फिर रमाकांत की खिलाफ लामबंद हो रहे हैं। यहीं नहीं रमाकांत यादव ने बीजेपी को हराने के लिए दीदारगंज में अपने भाई के बहू को निर्दल मैदान में उतार दिया और यह कहते रहे कि उनसे कोई लेना देना नहीं है।
इसका भी असर भाजपा के वोट बैंक पर पड़ा है। कहीं न कही भाजपा का कैडर रमाकांत के बारे यह मान रहा है कि वे सिर्फ अपने फायदे की राजनीति करते है। हाल में जिला पंचायत अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी रमाकांत की वजह से बीजेपी की किरकिरी हुई। कारण कि प्रमोद यादव ने रमाकांत पर अंतिम समय में धोखा देने और सपा का साथ देने का आरोप लगाया।
इससे भी भाजपाइयों में नाराजगी है। रमाकांत और जिला संगठन में छत्तीस का आंकड़ा है। रमाकांत की वजह से यदि दस प्रतिशत भी सवर्ण चुनाव में बीजेपी का साथ छोड़ते है अथवा संगठन प्रचार में कोताही करता है तो भाजपा की लुटिया डूब सकती है।