बता दें कि सपा, बसपा और कांग्रेस ने बीजेपी वर्ष 2014 से चुनाव दर चुनाव मात दे रही है। आजमगढ़ जिले में पार्टी भले ही एक ही सीट जीतने में सफल हुई हो लेकिन उसका जनाधार तेजी से बढ़ा है। वहीं मऊ और बलिया में विपक्ष को बुरी तरह मात दी है। सीएए के खिलाफ विपक्ष ने जिस तरह से लामबंद होकर सरकार को घेरने का काम किया था उससे बीजेपी की मुश्किल बढ़नी तय मानी जा रही थी। इनके आंदोलन को जबरदस्त समर्थन भी मिल रहा था लेकिन मुस्लिम वोट बैंक के चक्कर में विपक्ष आपस में ही उलझ गया है। खासतौर पर बिलरियागंज में हुए बवाल के बाद स्थिति और बिगड़ गयी है।
उलेमा कौंसिल के आक्रामक रूख के बाद समाजवादी पार्टी ने खुद को मुसलमानों का हितैषी साबित करने के लिए जेल में बंद लोगों से मिलने तक पहुंच गयी। साथ ही अपने मुस्लिम विधायक नफीस अहमद को आगे कर दाव खेलना शुरू कर दिया लेकिन यह कांग्रेस और उलेमा कौंसिल को रास नहीं आया। कांग्रेस अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ ने आजमगढ़ सांसद अखिलेश यादव के लापता होने का पोस्टर लगवा दिया तो उलेमा कौंसिल ने सांसद को हैलीकाप्टर वाला नेता बताते हुए अगले चुनाव में आने की बात कही। यानि कि सपा अपने की गढ़ में विपक्षी सहयोगियों से ही घिरी दिख रही है जिनके साथ मिलकर वह बीजेपी से लड़ने का दावा कर रही थी।
वहीं बीजेपी इस लड़ाई का पूरा फायदा उठाने के प्रयास में जुटी है। 2017 में यूपी में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली भाजपा गांवों में घूमकर न केवल सीएए के पक्ष में समर्थन जुटा रही है बल्कि अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हुए विपक्ष पर तुष्टीकरण की राजनीति का आरोप लगा रही है। विपक्ष आपस में उलझा हुआ है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि विपक्ष वही कर रहा है जो बीजेपी उनसे कराना चाहती है।
By Ran Vijay Singh